खबर हटके : कोरबा में लगा दुनिया का सबसे सस्ता मेला जहाँ सिर्फ 1 रुपये में बच्चों को मिली भरपूर खुशियाँ
नमस्ते कोरबा :- कभी किसी ने सोचा था कि “खुशी” की भी कोई कीमत हो सकती है? कोरबा जिले के सतरेंगा गाँव के गढ़कटरा प्राथमिक विद्यालय ने यह कर दिखाया और वह भी मात्र 1 रुपये में!
विद्यालय के शिक्षकों श्रीकांत भारिया और अजय कोशले ने “दुनिया का सबसे सस्ता मेला” नामक अनोखा आयोजन किया। इसमें सभी खाद्य पदार्थ, खेल सामग्री और मनोरंजन की चीजें केवल एक रुपये में उपलब्ध कराई गईं। उद्देश्य था बच्चों में सहयोग, सृजनशीलता और व्यवहारिक शिक्षा का समावेश।

इस मेले ने पूरे गाँव को एक सूत्र में बाँध दिया। बच्चों ने क्रेता बनकर जिम्मेदारी सीखी, और ग्रामवासी विक्रेता बनकर उनके उत्साह में शामिल हुए। मेले के साथ हुआ रावण दहन कार्यक्रम पूरे वातावरण को उत्सवमय बना गया।
इस मेले की विशेषता यह थी कि हर वस्तु, चाहे वह खाद्य सामग्री हो, खेल-कूद का सामान या मनोरंजन की चीजें सिर्फ 1 रुपये में उपलब्ध थीं। इसका उद्देश्य पैसे से अधिक “भागीदारी” को महत्व देना था।
बच्चे खुद क्रेता बने हिसाब-किताब सीखा, सामान बेचने वालों से संवाद किया और एक-एक सिक्के के बदले मुस्कानें बाँटते रहे। यही है शिक्षा का असली रूप जो किताबों से आगे, जीवन की पाठशाला तक पहुँचती है।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में पहुँचे समाजसेवी मनीष अग्रवाल ने शिक्षकों की सराहना करते हुए कहा “श्रीकांत भारिया और अजय कोशले जैसे शिक्षक हमारे समाज की नींव हैं, जो बच्चों में सिर्फ ज्ञान नहीं, जीवन मूल्य भी बोते हैं।”
इस अवसर पर एम.बी. पावर अनूपपुर के प्रेसिडेंट अजय अग्रवाल तथा श्रीमति द्रौपदी केदारनाथ अग्रवाल फाउंडेशन की डायरेक्टर संगीता अक्षय गर्ग ने मिठाई और उपयोगी वस्तुएँ वितरित कीं। गाँव के सरपंच बहोरन मझवार, प्राचार्य अंजू साहू, और शिक्षिका किरण कंवर सहित कई गणमान्य नागरिकों की उपस्थिति ने आयोजन को गरिमा दी।

ऐसे आयोजन हमें यह सिखाता है कि शिक्षा केवल परीक्षा का परिणाम नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया है। यदि हर विद्यालय अपने स्तर पर “एक रुपये की खुशी” जैसी पहल करे तो गाँवों में शिक्षा एक आंदोलन बन सकती है। गढ़कटरा विद्यालय ने दिखा दिया कि सरकारी विद्यालय भी प्रेरणा के केंद्र बन सकते हैं यदि वहाँ शिक्षक सपने देखने और उन्हें सच करने का साहस रखें।
“दुनिया का सबसे सस्ता मेला” वास्तव में खुशियों का सबसे कीमती आयोजन था।
इसने यह सिद्ध कर दिया कि जब शिक्षकों की सोच सकारात्मक हो, समाज का सहयोग मिले और बच्चे केंद्र में हों तब शिक्षा केवल किताबों तक सीमित नहीं रहती, बल्कि पूरे गाँव का चेहरा बदल सकती है।सतरेंगा का यह छोटा सा मेला आने वाले समय में पूरे राज्य के लिए प्रेरणा बन सकता है।
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