छत्तीसगढ़ का कश्मीर चैतुरगढ़ किला,जहां विराजित है मां महिषासुर मर्दिनी देवी की अष्टभुजी प्रतिमा
नमस्ते कोरबा : जिले के धार्मिक पर्यटन स्थल चैतुरगढ़ समेत पाली विकासखंड मुख्यालय और आसपास के देव स्थलों देवी मंदिरों में शारदीय नवरात्रि का पर्व बड़े ही श्रद्धा भक्ति भाव के साथ मनाया जा रहा है. मन्दिरों-देवालयों के कलश भवन में आस्था के प्रतिरूप सैकड़ों मनोकामना ज्योति कलश प्रज्ज्वलित किए गए हैं.
जहां भक्तों की भीड़ उमड़ रही है.प्रदेश के 36 किले (गढ़) में से एक चैतुरगढ़ का किला है जहां हज़ारो साल पुराना मां महिषासुर मर्दिनी देवी की अष्टभुजी प्रतिमा स्थापित है. जो तात्कालिक राजाओं और बाद में लाफागढ़ जमींदारी की अधिष्ठात्री देवी है.
इतिहासकार इसकी ऐतिहासिक पृष्टभूमि के लिए खींचे चले आते हैं तो माता का पुरातन मन्दिर होने के कारण धार्मिक आस्था रखने वाले श्रद्धालुओं वही प्रकृति प्रेमी इस पर्वत श्रृंखला की हरी भरी वादियों में सम्मोहित हो जाते हैं. यानि कि हर व्यक्ति के लिए यहां पाने देखने के लिए कुछ न कुछ है इसी कारण लोग बरबस खींचे चले आते हैं चैतुरगढ़.
इतिहास और खूबसूरती के लिए पर्यटकों के बीच है विख्यात
छत्तीसगढ़ का “चैतुरगढ़ किला” अपनी वास्तुकला, इतिहास और खूबसूरती के लिए पर्यटकों के बीच विख्यात है. चैतुरगढ़ किले को ‘लाफागढ़ किले’ के नाम से भी जाना जाता है. चैतुरगढ़ किला 5 किलोमीटर वर्ग के क्षेत्रफल में फैला हुआ है.आपको बता दे की चैतुरगढ़ किला भारत के सबसे मज़बूत प्राकृतिक किलों में से एक है. साथ ही, यह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित है.चैतुरगढ़ किला 3,060 मीटर की ऊंचाई पर पहाड़ पर बसा हुआ है.
इस किले में महिषासुर मर्दिनीदेवी मां का मंदिर स्थापित है.चैतुरगढ़ किले को राजा पृथ्वी देव ने बनवाया था. किले का निर्माण कल्चुरी संवत 821 यानी 1069 ईस्वी में हुआ. किले के अंदर जाने के लिए तीन द्वार यानी रास्ते हैं, मेनका, हुमकारा और सिम्हाद्वार.
कहा जाता है छत्तीसगढ़ का कश्मीर जहां साल भर पड़ती है ठंड
महिषासुर मर्दिनी मंदिर समुद्र तल से 3,060 फ़ीट ( लगभग 1,100 मीटर) की ऊंचाई पर है. महिषासुर मर्दिनी मंदिर की ख़ास बात यह है कि भीषण गर्मी में यहां का तापमान 25-30 डिग्री सेल्सियस रहता है.इस वजह से इस जगह को कश्मीर से कम नहीं समझा जाता. चैतुरगढ़ किले में सबसे ज़्यादा महिषासुर मर्दिनी मंदिर ही मशहूर है. पुरातत्वविद के अनुसार, इस मंदिर को कल्चुरी शासन काल के दौरान राजा पृथ्वीदेव द्वारा सन् 1069 ईस्वीं में बनवाया गया था. वही पुरानी मान्यताओं को देखें तो ऐसा मारा जाता है कि महिषासुर का वध करने के बाद माता ने यहां विश्राम किया था.
औषधि और जड़ी बूटियां से परिपूर्ण है चैतुरगढ़ का वन
इसके साथ ही चैतुरगढ़ में अलग-अलग प्रकार की जड़ी-बूटियों, औषधियों और वन्य जीव-जंतुओं से भरी हुई है. किले का सफर यूँ तो रोमांचमयी होता है पर बरसात के समय किले का सफर करने में अलग ही मज़ा और सनसनाहट महसूस होती है. हालांकि अंधेरा होने के बाद जंगली जानवरों का खतरा बना रहता है.







