
नमस्ते कोरबा :-: राज्य सरकार ने फसलों की सुरक्षा, किसानों की आय को बढ़ाने और शहरों की सडक़ों पर घूम रहे मवेशियों से होने वाले हादसों को रोकने के उद्देश्य से रोका-छेका अभियान की शुरुआत की थी। लेकिन कोरबा जिला में यह अभियान फेल होता नजर आ रहा है। शासन के निर्देशों के बावजूद नगर निगम क्षेत्र में मवेशी सडक़ों पर बैठे रहते हैं। साथ ही खेतों में पहुंचकर भी मवेशी फसलों को चर रहे हैं। जिले में चाहे मुख्य मार्ग हो या कॉलोनी के गली मोहल्लों की सड़कें बारिश होने के बाद सड़कों पर केवल मवेशी नजर आ रहे हैं
पशुओं की सुरक्षा और सडक़ दुर्घटनाओं में कमी लाने के लिए राज्य सरकार ने रोका-छेका अभियान की शुरुआत की थी, जिसके तहत मवेशियों को गोठानों में रखने की योजना है। शासन की महत्तवकांक्षी योजना का क्रियान्वयन सिर्फ दिखावे तक ही सीमित नजर आ रहा है। हमेशा मवेशी सडक़ों पर बैठे नजर आ रहे है। ये मवेशी हादसों को आमंत्रित कर रहे है। बारिश के बाद मवेशी अक्सर मुख्य सडक़ों पर बैठ जाते है, जिनकी चिंता न नगर निगम प्रशासन कर रहा है और ना ही रोका-छेका के अभियान के प्रमुख बावजूद इसके इन पर अधिकारी भी ध्यान नहीं दे रहे हैं।
बता दें कि प्रदेश में रोका-छेका अभियान कहीं धीमा तो कहीं ठप है। राज्य सरकार ने फसलों की सुरक्षा और किसानों की आय को बढ़ाने के लिए कृषि की परंपरा रोका-छेका अभियान की शुरुआत की थी। शहरों की सडक़ों पर घूम रहे मवेशियों से होने वाले हादसों को रोकने के लिए भी यह कदम अहम माना गया। पकड़े गए मवेशियों को कांजी हाउस और गोठानों में रखने के आदेश दिए गए है। लेकिन ज्यादातर जगहों पर तस्वीर इसके विपरीत नजर आ रही है।
क्या है रोका-छेका
रोका- छेका पुराने समय से ग्रामीण जिंदगी का अभिन्न हिस्सा रहा है। खरीफ फसल की बोआई के बाद फसल की सुरक्षा के लिए पशुधन को गोशालाओं में रखने की प्रथा रही है, ताकि मवेश खेतों में न जा पाएं और फसल सुरक्षित रहे। मवेशियों को संरक्षित करना, फसलों को मवेशियों से बचाना और गोबर से कुदरती खाद बनाना इसका मुख्य उद्देश्य है।
