Sunday, June 1, 2025

7 महीने से इंतजार अधूरा,गोद में मां,कंधों पर जिम्मेदारी का पहाड़,कलेक्टर के आदेश के बाद भी मकान नहीं हुआ पूरा

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7 महीने से इंतजार अधूरा,गोद में मां,कंधों पर जिम्मेदारी का पहाड़,कलेक्टर के आदेश के बाद भी मकान नहीं हुआ पूरा

नमस्ते कोरबा :- 51 वर्षीय बंधन सिंह के लिए ज़िंदगी सिर्फ दो वक़्त की रोटी जुटाना नहीं, बल्कि 80 साल की बुज़ुर्ग मां समारीन बाई को गोद में उठाकर हर रोज़ ज़िंदगी के मोर्चों से लड़ना भी है।

समारीन बाई चल फिर नहीं सकतीं। एक वक्त था जब उन्होंने अपने बेटे को गोद में उठाया था, आज वही बेटा उन्हें गोद में उठाकर टूटे घर से बाहर लाता है—धूप में, बारिश में, ज़रूरतों में, और इलाज के लिए।

प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत एक घर भी मिला पर अधूरा।छत है, लेकिन फर्श नहीं। दीवारें हैं, मगर पलस्तर नहीं। एक घर है, पर ठहरने की इजाज़त नहीं,7 महीने से मां-बेटा दोनों एक टूटी-फूटी झोपड़ी में जी रहे हैं, जहां गर्मी की तपिश और असहायता दोनों उन्हें एक नई तकलीफ देती हैं। क्या ये वही कल्याणकारी योजना है, जहां घर सिर्फ कागजों में पूरे होते हैं और ज़िंदगियां अधूरी रह जाती हैं?

 

बंधन सिंह जो आपको अजगर बहार और सोनपुरी के मध्य अपनी 80 वर्ष की मां को गोद में लेकर चलते नजर आ जाएंगे, आज से लगभग 7 माह पूर्व इनके वीडियो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुए थे, जानकारी मिली कि एक टूटे हुए झोपड़ी में मां और बेटे दोनों निवासरत हैं,

बालकों के अधिवक्ता और समाजसेवी अब्दुल नफीस खान ने कलेक्टर जन दर्शन में आवेदन के माध्यम से प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मकान देने की गुजारिश की थी,जिस पर कलेक्टर कोरबा के द्वारा संज्ञान लेते हुए एक माह के भीतर आवास बनाकर मां बेटे को देने का निर्देश दिया था परंतु 7 माह के बाद भी आवास संपूर्ण नहीं हो सका है आईए जानते हैं क्या है पूरा मामला

बंधन सिंह की माता समारीन बाई के नाम पर प्रधानमंत्री आवास स्वीकृत हुआ था किन्तु उनका आवास कभी बना नहीं। इस संबंध में दिनांक 21 अक्टूबर 2024 को कलेक्टर महोदय कोरबा को शिकायत सौंपी गई थी, जिस पर त्वरित संज्ञान लेते हुए कलेक्टर महोदय के द्वारा आवेदन को जनपद पंचायत कोरबा को अग्रेषित किए थे, इसके बाद मुख्य कार्यपालन अधिकारी, जनपद पंचायत कोरबा के द्वारा दिनांक 25 अक्टूबर 2024 को सरपंच, सचिव, तकनीकी सहायक एवं रोजगार सहायक को समारीन बाई एक आवास एक माह के भीतर पूर्ण कराने के स्पष्ट निर्देश दिए गए थे।

आदेश एक माह का था, लेकिन 7 माह गुजर गए और मकान अभी भी अधूरा है।

हालांकि मकान की दीवारें खड़ी कर दी गई हैं, छत ढल चुकी है, सामने पलस्तर कर दरवाजे-खिड़कियाँ भी लगा दी गई हैं, लेकिन अंदर व बाहर के तीन हिस्से अब तक बिना पलस्तर के हैं और फ्लोरिंग भी नहीं की गई है।

आश्चर्य की बात यह है कि इस अधूरे मकान की चाबी समरीन बाई को सौंप दी गई, मानो निर्माण कार्य पूर्ण हो चुका हो। यह न केवल लापरवाही है, बल्कि योजनाओं की जमीनी स्तर पर क्रियान्वयन की असलियत को भी उजागर करती है।

शासन की महत्वपूर्ण योजना की यह स्थिति उस समय और भी अफसोसजनक हो जाती है जब यह कार्य शासन की निगरानी में किया जा रहा हो। अब देखना यह होगा कि शासन-प्रशासन कब जागता है और कब इस पीड़ित परिवार को वास्तव में एक संपूर्ण छत नसीब होती है।

बंधन सिंह आज भी उस दरवाज़े को खटखटा रहा है, जहां से उम्मीद की कोई रौशनी मिल सके।

लेकिन सवाल ये है — क्या उसकी आवाज़ सुनी जाएगी? क्या उसकी मां को जीते जी एक संपूर्ण छत नसीब होगी?

“आदेश वो होता है जो जमीन पर उतरकर परिणाम दे, सिर्फ पन्नों में दर्ज होना उसका उद्देश्य नहीं होता

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