डीएमएफ फंड से 13 पुनर्वास ग्राम को मॉडल गांव बनाने की योजना फाइल में दफन, खनिज न्यास मद के अरबो रुपए में से पुनर्वास गावों को नहीं मिली फूटी कौड़ी, जिम्मेदारों को पता ही नही कि कितने है पुनर्वास गांव
नमस्ते कोरबा :- कोरबा जिले को खनिज न्यास मद से हर साल करीब 550 करोड़ रुपए मिलता है। इस राशि पर पहला हक खदान प्रभावित पुनर्वास गांव का है। मगर प्रशासनिक अफसरों ने कई पुनर्वास ग्रामों को खदान प्रभावित गांव की सूची से ही बाहर कर दिया है। अपने हक की लड़ाई के लिए प्रभावित भूविस्थापित कोर्ट की शरण में जाने की तैयारी कर रहे हैं।
अस्पताल में लटकता ताला, दूषित तालाब, और हर तरफ पसरी गंदगी, ये नजारा है एसईसीएल के बसाहट गांव चैनपुर का। इसी तरह कुसमुंडा, गेवरा और दीपका खदान से प्रभावित दर्जनों गांव है जिसे पुनर्वास योजना के तहत एसईसीएल मैनेजमेंट द्वारा बसाया गया है। करीब तीन दशक से लोग इसी तरह नरकीय जीवन जीने को मजबूर है। प्रशासनिक अफसरों ने 6 साल पहले 13 पुनर्वास गावों को मॉडल ग्राम बनाने की योजना बनाई थी। मगर वो योजना भी फाइलों में गुम हो गई। लोग मूलभूत सुविधा के लिए भी तरस रहें हैं।
खदान प्रभावित क्षेत्रों का विकास कराने के लिए केंद्र सरकार द्वारा साल 2016 में नोटिफिकेशन जारी किया था। जिसके तहत खनिज विभाग को मिलने वाले राजस्व में से 40 फीसदी राशि जिले को मिलती है। सालाना करीब 550 करोड़ रुपए मिल रहा है। खदान प्रभावित क्षेत्रों के विकास को पहले प्राथमिकता देनी थी। मगर सरकार के निर्देशों की अनदेखी कर जिम्मेदार अफसरों ने मनमानी करते हुए डीएमएफ फंड का जमकर दुरुपयोग किया। करोड़ों रुपए बर्बाद कर दिए। प्रशासन की मनमानी से नाराज भूविस्थापित अब न्यायालय का दरवाजा खटखटाने जा रहे हैं।
कोरबा जिले में खदान से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से 202 गांव प्रभावित है। बेलटिकरी, सिरकी, रामपुर, चैनपुर, विजय नगर, गंगानगर, गांधीनगर, नेहरूनगर समेत 13 पुनर्वास गांव हैं। बाकी प्रभावित गांव की जमीन लेने की प्रक्रिया जारी है। पहले एसईसीएल मैनेजमेंट ने वादा खिलाफी की और अब प्रशासनिक अधिकारी लोगो की भावनाओं से खिलवाड़ कर रहें है। ऐसे में प्रभावित ग्रामीणों में काफी आक्रोशित है। उन्होंने खदान विस्तार के लिए आगे जमीन देने से इंकार कर दिया है अगर यही हालात रहे तो कंपनी की मुश्किलें बढ़ना तय है।
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