नमस्ते कोरबा :: आख़िर तो हम इंसान ही हैं न ! तो हम क्यों सुधरें? यह बातें कोरबा की जनता शत प्रतिशत सही साबित करने में जुटी हुई है, लगभग 2 वर्षों से कोरोनावायरस का प्रकोप झेल रहे हैं,फिर भी सुधरने का नाम नहीं ले रहे हैं. कोरोना महामाई की विभीषिका वहीं परिवार समझ रहा है जिन्होंने अपने किसी को इस महामारी की चपेट में खोया है.कोरोना अपनी दूसरी जबरदस्त पारी खेल कर कुछ शांत हुआ है और तीसरी पारी के लिए हम और आप उसे आमंत्रित कर रहे हैं और लोग छप्पन भोग के बिना जिन्दगी कैसी के तर्ज पर सरकार और तंत्र को ठेंगा दिखाने में मस्त हैं।

जिला प्रशासन और नगर निगम बार बार मुनादी करवा रही है कि खुद सुरक्षित रहें और समाज को भी सुरक्षित करें। पर क्या फायदा? लोगों ने इसका जिम्मा भी प्रशासन पर ही थोप दिया। प्रशासन अपने स्तर से भरपूर प्रयास कर रही है लोगों को इस संक्रमण से बचाया जा सके। नगर निगम युद्ध स्तर पर सफाई, सेनेटाइजेशन, फॉगिंग इत्यादि करवा रहा है। परन्तु कुछ मामलों में विफल है। मुर्गा, मिट एवं मछली के अवशिष्टों को यत्र – तत्र सड़क किनारे फेंका जा रहा है। इसे रोकने के लिए नगर निगम को इस तरह के अवैध दुकानदारों पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए।

आपकी एक छोटी सी लापरवाही समस्त प्रियजनों को परेशानी में डाल देगी। प्रशासन को भी चौकस रहने की जरूरत है। सभी चौक चौराहों पर प्रशासन के द्वारा मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग चेकिंग अभियान चलाना अत्यंत आवश्यक हो गया है, ताकि कोरोनावायरस की तीसरी पारी के प्रकोप से कोरबा वासी कुछ हद तक सुरक्षित रह सकें







