संडे स्पेशल:कोरबा की बिजली व्यवस्था में अव्यवस्था,लापरवाही और चुप्पी
नमस्ते कोरबा : ऊर्जा नगरी कोरबा जो प्रदेश की रोशनी का पर्याय मानी जाती है,आज खुद अंधेरे में डूबी हुई है। यह सिर्फ बिजली कटौती की नहीं, बल्कि जवाबदेही के संकट की कहानी है। हाल के दिनों में शहर के कई इलाकों में बिना पूर्व सूचना के बार-बार बिजली कट रही है।
ऊर्जा नगरी का अंधेरा, जब रोशनी देने वाला शहर खुद अंधेरे में
नागरिकों की शिकायत है कि विभागीय अधिकारी फोन नहीं उठाते, कंट्रोल रूम लगातार व्यस्त रहता है और शिकायतों का कोई तय समाधान नहीं होता। कई बार मामूली फाल्ट को दुरुस्त करने में घंटों लग जाते हैं, क्योंकि कई जोनों में पूरी व्यवस्था केवल चार–पाँच कर्मचारियों के भरोसे चल रही है। यह स्थिति न केवल तकनीकी कमजोरी दर्शाती है, बल्कि प्रशासनिक उपेक्षा और अव्यवस्था की भी मिसाल है।
बिजली कटौती का असर जनजीवन पर गहरा पड़ रहा है
बिजली कटौती का असर जनजीवन पर गहरा पड़ रहा है। बच्चे, बुजुर्ग,मरीज और छोटे व्यापारी सभी प्रभावित हैं। बिजली अब केवल सुविधा नहीं रही, बल्कि विश्वास और जीवन की निरंतरता का प्रतीक बन चुकी है। जब यह विश्वास बार-बार टूटता है, तो जनता केवल अंधेरे में नहीं, बल्कि व्यवस्था की विफलता में जी रही होती है।
सवाल यह भी उठता है कि इस स्थिति पर स्थानीय जनप्रतिनिधियों की भूमिका क्या है?
विधायक पार्षद और नगर निगम के पदाधिकारी जनता की समस्याओं पर कितनी निगरानी रख रहे हैं? जनता का कहना है कि चुनावों के समय बिजली और विकास पर बड़े वादे किए जाते हैं, लेकिन जब व्यवस्था लड़खड़ाती है तो नेतृत्व मौन हो जाता है। यह चुप्पी जनता के भरोसे को और कमजोर करती है।
समय की मांग है कि बिजली विभाग पारदर्शी और जवाबदेह व्यवस्था लागू करे
कटौती से पहले सूचना जारी की जाए,अधिकारी की ड्यूटी सूची सार्वजनिक हो, और शिकायत निवारण की स्पष्ट समय-सीमा तय की जाए। साथ ही, जनप्रतिनिधियों को इस विषय पर विभाग के साथ नियमित समीक्षा करनी चाहिए।
कोरबा के नागरिक अब केवल बिजली नहीं, बल्कि जवाबदेही की रोशनी चाहते हैं।
ऊर्जा नगरी का यह अंधेरा तभी खत्म होगा, जब हर जिम्मेदार संस्था अपनी भूमिका निभाए ईमानदारी से, पारदर्शिता के साथ और जनता के प्रति संवेदनशील होकर। ऊर्जा का शहर तब तक उजला नहीं हो सकता, जब तक उसकी नीतियाँ और नीयत दोनों रोशनी में न हों।”
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