चले गांव की और देखिए,देश की आत्मा कहे जाने वाले गांवों की हालत जमीनी स्तर पर चिंताजनक
नमस्ते कोरबा : भारत चाँद पर कदम रख चुका है, लेकिन कोरबा जिले के कुछ गांव आज भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। देश की आत्मा कहे जाने वाले गांवों की हालत जमीनी स्तर पर अब भी चिंताजनक है।
हम बात कर रहे हैं कोरबा जिला मुख्यालय से करीब 55 किलोमीटर दूर ऐतमानगर ग्राम पंचायत के आश्रित गांव ठाड़पखना की, जहां के ग्रामीण आज भी नाव से जान जोखिम में डालकर राशन लेने को मजबूर हैं। हमारी टीम ने इस गाँव मे पहुंचकर जाना ग्रामीणों का हाल,
सरकार ग्रामीण विकास के लाख दावे करे, लेकिन कोरबा जिले के आदिवासी इलाकों की सच्चाई इन दावों की पोल खोलती नजर आती है। ऐतमानगर ग्राम पंचायत का आश्रित गांव ठाड़पखना—जहां सड़क नहीं, पीने का पानी नहीं और ना ही गांव में उचित मूल्य की राशन दुकान है
यहां के ग्रामीणों को राशन लेने के लिए या तो 10 किलोमीटर का लंबा रास्ता तय करना होता है या फिर जान जोखिम में डालकर नाव से नदी पार करनी पड़ती है।
ग्रामीणों के मुताबिक, इस रास्ते में अब तक तीन लोगों की जान भी जा चुकी है। ग्रामीणों ने बताया की पानी की समस्या भी कम नहीं है बांगो बांध के डूब क्षेत्र से पानी भर कर लाते हैं। एक हेंडपम्प है उसमे क़ा पानी भी गंदा है।
गांव में ज्यादातर आबादी आदिवासी है, जो पहाड़ों पर निवास करती है। सरकार की ओर से इनके लिए खास योजनाएं हैं, लेकिन इनका लाभ ज़मीनी स्तर पर नहीं पहुंच पाता। जनप्रतिनिधि और अधिकारी सुविधाएं समय पर मुहैया नहीं करा पा रहे।
तो सवाल ये है कि चांद पर पहुंचने वाला भारत कब अपने गांवों तक सड़क, पानी और राशन जैसी बुनियादी सुविधाएं पहुंचा पाएगा? ठाड़पखना के ग्रामीणों की यह पुकार क्या कभी सुनवाई तक पहुंचेगी?
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