कोरबा का गौठान बना मौत का मैदान,जेसीबी से हटाई जा रही थीं गायों की लाशें
नमस्ते कोरबा :- कोरबा जिले के गोकुल नगर गौठान का मंजर ऐसी कराह है जो कानों में नहीं आँखों में झंझोड़ती है। जहाँ मुख्यमंत्री गौ माता को “राज्य माता” का दर्जा देने की बातें करते हैं, वहीं गोकुल नगर के गोठान में गायें भूख, प्यास और उपेक्षा के कारण तड़प-तड़प कर मौत के मुंह में जा रही हैं और उन मौतों को छिपाने की कवायद भी बेखौफ की जा रही है।
3 नवंबर 2025 को पत्रकारों द्वारा की गई दृश्यावलोकन में वहां मृत गायों की ताबूत-सी सन्नाटा और लाशों को हटाते हुए जेसीबी का वीडियो दर्ज हुआ। जब रिपोर्टिंग टीम अंदर जाने की कोशिश कर रही थी तो एक महिला केयरटेकर ने उन्हें रोका और तुरंत गेट पर ताला लगा दिया गया ऐसा प्रयास कि सच्चाई को कैमरे में कैद न होने पाए। स्थानीय सक्रिय सदस्य रामेश्वर प्रसाद रजक जो अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार समूह से जुड़े हैं, बताते हैं कि 1 नवंबर को उनकी टीम ने पहुंचने पर तीन मृत और कई बीमार गायें पाईं जिनके पास पर्याप्त चारा और पानी नहीं था।
गोठान में जमीन पर पड़ी मृत और तड़प कर दम तोड़ चुकी गायों की तस्वीरें और प्रत्यक्षदर्शी बयानों ने यह संकेत दिया कि नगर निगम/ठेकेदार तरफ़ से उपेक्षा या लापरवाही हुई है और कुछ लोग तो इसे छुपाने की सक्रिय कोशिश में भी लगे हुए दिखे।
नगर निगम कोरबा के सभापति नूतन सिंह ठाकुर ने इस पर कड़ी नाराज़गी जताई और कहा है कि पुरानी लापरवाही के बाद ठेकेदार बदला गया था; यदि फिर वही हाल हुआ तो तुरंत कार्रवाई होगी। हालांकि इस मामले में जिम्मेदार अधिकारियों, ठेकेदार और राजनीतिक जानकारों की चुप्पी और दिये गए वादों के बीच जमीन पर मवेशियों की मौत जारी है जिससे सवाल उठते हैं कि सरकारी घोषणाएँ और जमीन पर कार्यान्वयन में क्यों इतनी खाई है। विपक्षी नेता और गौ माता के नाम पर सक्रिय कुछ राजनीतिक ताकतों की मौनता भी चर्चा का विषय बनी हुई है।
गोकुल नगर का यह मामला स्थानीय शर्मिंदगी भर नहीं यह उस व्यवस्था की परीक्षा है जो गौ माता की आस-पास बुनती गई राजनीति और नीतियों के दायरे में वास्तविक ज़िम्मेदारी निभाने में नाकाम हो रही है। जब सड़क पर भटकते मवेशी दुर्घटना का कारण बनते हैं, तो उन्हें सुरक्षित गोठानों तक पहुँचाने और वहाँ उनकी देखभाल निगम की जिम्मेदारी है न कि तड़पने के लिए छोड़ देना।
गौ माता की आस्था पर राजनीति व घोषणाएँ तभी अर्थ रखती हैं जब जमीन पर उनकी रक्षा की व्यवस्था मौजूद हो। ‘राज्य माता’ जैसे आदर्श तब सार्थक होंगे जब शासन त्वरित और पारदर्शी कार्रवाई सुनिश्चित करे वरना यह केवल बयानबाजी से अधिक नहीं रहेगा।







