Saturday, August 2, 2025

फ्रेंडशिप डे विशेष : दोस्ती की वो धूपछाँव, जब दिलों से जुड़ा था 90 का दशक,कोरबा की गलियों से उठती यादों की महक

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फ्रेंडशिप डे विशेष : दोस्ती की वो धूपछाँव, जब दिलों से जुड़ा था 90 का दशक,कोरबा की गलियों से उठती यादों की महक

नमस्ते कोरबा : फ्रेंडशिप डे हर साल आता है,लेकिन कुछ दोस्तियाँ सालों नहीं, दशकों तक साथ चलती हैं। खासकर अगर आप 90 के दशक के कोरबा में पले-बढ़े हैं,तो आपके लिए दोस्ती महज़ एक रिश्ता नहीं, एक एहसास थी धूप में तपती, छाँव में राहत देती।

कॉलोनी की वो सोंधी हवा

90 के दशक में कोरबा की पहचान सिर्फ़ एक इंडस्ट्रियल टाउन नहीं थी यह एक जीवंत मोहल्ला था।एसईसीएल,एनटीपीसी,बालको,पुराना कोरबा,राजेंद्र प्रसाद नगर,शिवाजी नगर, महाराणा प्रताप नगर,की कॉलोनियाँ सिर्फ़ मकान नहीं थीं,दोस्ती के अड्डे थीं। शाम ढले जैसे ही लाइट जलती,हर गली में बच्चों की टोलियाँ गूँजतीं बिंदास,बेपरवाह और सच्चे दिलों से भरी हुईं।

स्कूल: दोस्ती का असली मैदान

सरस्वती स्कूल हो या मिशन,निर्मला हो या बिकन या फिर विद्युत गृह स्कूल की बेंचें उस दौर की दोस्ती की सबसे बड़ी गवाह हैं। क्लास में फुसफुसाना, एक-दूसरे की कॉपियाँ उधार लेना, और टीचर से बचाकर किए गए लंच शेयर यही वो लम्हे थे जो हमें जोड़ते गए।

नुक्कड़ की चाय और पकोड़े वाली दोस्ती

कोरबा के पुराने चौक-चौराहों पर बनी चाय की दुकानों से लेकर बस स्टैंड के टिकिया-पकोड़े तक हर जगह दोस्ती के क़िस्से पके। मोबाइल नहीं थे,लेकिन वक़्त ज़रूर था। वो बातें, वो बहसें, और वो बेसब्री से इंतज़ार आज की दुनिया में शायद दुर्लभ हैं।

 रिश्तों में था अपनापन, पासवर्ड नहीं

आजकल की दोस्ती स्क्रीन लॉक और स्टेटस तक सिमट गई है। पर 90 के दशक में,मोहल्ले का हर बच्चा जानता था कि “कौन किसका जिगरी है”। न कोई ‘ब्लॉक’ करता था, न ‘सीन’ का इंतज़ार रहता था,एक बार दोस्ती हो गई,तो उम्रभर साथ चलती थी।

कोरबा की गलियों में आज भी जिंदा है बचपन की वो दोस्ती

कोरबा की पुरानी गलियों में आज भी वो आवाज़ें गूंजती हैं, जो कभी कंचों की खनक, साइकिल की घंटी और बच्चों की खिलखिलाहटों में गुम हुई थीं। समय भले बदल गया हो, लेकिन बचपन की दोस्ती का स्वाद आज भी वैसा ही है, मिट्टी में सना हुआ, मासूम और सच्चा।

जब गली ही थी दुनिया

90 के दशक का कोरबा या उससे पहले का जहाँ मोहल्ला ही पूरी दुनिया होता था। घर के बाहर पड़ी ईंटें विकेट बनती थीं और टूटी चप्पलें बैट। न कोई मोबाइल था,न टाइम टेबल बस सूरज की रोशनी और माँ की आवाज़ बताती थी कि अब घर लौटने का वक्त है।

हर मोड़ पर एक यार मिलता था

कोरबा की गलियों में हर दूसरा बच्चा दोस्त था। नाम याद रहे न रहे, पर चेहरे आज भी मन में ताज़ा हैं। टिफिन शेयर करना, होमवर्क में नकल कराना, और साथ में डाँट खाना ये सब दोस्ती के छोटे-छोटे त्योहार थे।

झगड़े भी होते थे, मनमुटाव भी पर दूरी नहीं

एक गुल्लक फूटने पर दिनभर बात नहीं होती थी, लेकिन शाम होते-होते कोई आकर कहता, “चल ना गिल्ली डंडा खेलते हैं,” और दोस्ती फिर से वहीं से शुरू हो जाती बिना माफ़ी, बिना मनुहार।

आज जब सोशल मडिया पर मिलते हैं, दिल मुस्कुरा उठता है

कोई मुंबई में है कोई रायपुर में। कोई नौकरी कर रहा है, कोई बच्चों की परवरिश में व्यस्त है। पर जब भी कोई पुराना फोटो टैग होता है, या किसी स्कूल रीयूनियन की बात होती है, तो वही पुराना कोरबा, वही गलियाँ, वही दोस्त दिल के पर्दे पर चलने लगते हैं।

वो दोस्ती, जो आज भी साँस लेती है

वक़्त ने हमें बड़ा कर दिया, पर बचपन की वो दोस्ती आज भी ज़िंदा है। वो अब शायद रोज़ बात नहीं करती, न रोज़ मिलती है, पर जब भी मिलती है सब वैसा ही लगता है, जैसा तब था।

कोरबा की वो दोस्ती सिर्फ याद नहीं है…

वो आज भी एक जानी-पहचानी गली में हमारा इंतज़ार कर रही है। जिस शहर की गलियों में दोस्ती खेला करती थी, आज वहाँ बस दौड़ है… मंज़िलों की, जिम्मेदारियों की, और कभी-कभी खुद से मिलने की भी। पर शुक्र है, कोरबा की उन गलियों ने हमें वो रिश्ता दिया जो वक्त की धूल से कभी धुंधला नहीं हुआ।

आज के फ्रेंडशिप डे पर…

चलो, कुछ देर के लिए फिर से उस दौर में लौट चलते हैं। उस कोरबा को याद करें, जहाँ साइकिल की घंटी में दोस्ती की आवाज़ थी, और बिना कहे भी सब समझते थे। इस बार सिर्फ़ मैसेज ना भेजें,कॉल करें पुराने दोस्तों से मिलें,क्योंकि 90 की दोस्ती में तकनीक नहीं,तक़रीब होती थी। फ्रेंडशिप डे की ढेरों शुभकामनाएँ, उस दौर के उन दोस्तों के नाम,जो आज भी यादों की दीवार पर मुस्कुराते हैं।

अगर आपको यह पढ़कर हल्की-सी मुस्कान आई हो…अगर कहीं अंदर वो पुराना दोस्त फिर से जगा हो… तो बस इतना समझिए आप भी उसी दौर के मुसाफिर हों,

जहाँ दोस्ती वॉट्सऐप स्टेटस से नहीं, गली के नुक्कड़ और साइकिल की घंटी से बयाँ होती थी।

आज किसी एक दोस्त को बस इतना लिख भेजो:

 “याद है वो कोरबा वाला ज़माना?”

आप देखना… शायद अगले ही पल वो रिप्लाई करे

“अबे ओ पगले, तू आज भी वैसा ही है!”

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