पंडित रविशंकर शुक्ल नगर में चल रही भागवत कथा का चौथा दिन,श्रीराम एवं कृष्ण जन्मोत्सव में झूमे श्रद्धालु
नमस्ते कोरबा :- पंडित रविशकर शुक्ला नगर में चल रही श्रीमद भागवत सप्ताह कथा के चतुर्थ दिवस श्री धाम: वृन्दावन के प्रख्यात भागवत प्रवक्ता श्री हित ललित बल्लभ जी महाराज ने श्रोताओ को सम्बोधित करते हुये कहा, “सत्कर्म करते हुये मन वाणी को मधुर रखना चाहिए जिससे हमारा जीवन सार्थक होगा” गज और उग्राय प्रसंग में बताया कि जब मगर ने हाथी का पैर पकड़ लिया, तब उसने अपने बचाव के सभी प्रयास किये, अन्त में कमल पुरुष ले गोविन्द प्रभु का स्मरण किया तो भगवान तुरन्त रक्षा करने को प्रगट हो गये और कहा, “मेरे भक्त का पैर छोड़ दें”, मगर ने कहा, “मैं कैसे इसका पैर छोड़ टू इसने आपका पैर पकड़ रखा है, इसलिए मैने इसका पैर पकड़ रखा है। अत: भक्त चरणाश्रय में होता है उद्धार |
महाराज जी वृतांत को आगे बढाते हुये समुन्द्र अन्यन कथा में बताया, “देवताओं और राक्षसों ने मिलकर समुद्र मंथन किया | अन्यन के दौरान सर्व प्रथम विष निकला, जिसे देखकर दैत्य व देवता भयभीत हो गये | फिर भगवान नारायण के कहने पर भगवान शिव ने जहर का पान किया | हम लोग जब कोई अच्छा कार्य करते हैं तब पहले बुराई सुनने को मिलती हैं | जिसने बुराईयों को बचा लिया उसे अमृत की प्राप्ति होती है | विषपान के पश्चात भगवान शिव को पसीना आया और बहा पसीना नर्मदा नदी के रूप में प्रगट हो गया | आखिरी में भगवान धन्वन्तरी के रूप में अमृत का कलश लेकर प्रगट हुये | देवताओं ने अमृत पान किया। शुभाचार्य जी के कहने पर राक्षसों ने देवताओं पर चढ़ाई की | भयंकर देवासुर संग्राम छिड़ गया | अमृत पीने के कारण देवताओ ने युद्ध को जीत लिया |” वामन अवतार के सन्दर्भ में बताया की “वामन भगवान राजा बाली के यज्ञ में पथधारे, बाली को अपने दानी होने का बड़ा गर्भ था | वामन देव तीन पग भूमि माँगी और दो पग में सम्पूर्ण त्रिलोकी को नाप लिया, तीसरा पैर कहा रखें, तब बाली ने अपना सर झुका दिया, कहा, “कि तीसरा पैर मेरे सिर पर रख दों“ इस समर्पण से वामन भगवान प्रसन्न हुये और सुतल लोक का राज्य दे दिया।” आगे सूर्य वंश वर्णन में सगर के साठ हजार पुत्र जो कपिल मुनि के श्राप से जलकर भस्म हो गये थे, उन्हें भागीरथ जी ने गंगा जी द्वारा उनका उद्धार किया। भक्त अम्बरीष चरित्र वर्णन करते हुये श्री जन्म की कथा श्रवण करायी चन्द्रवंश में भगवान श्री कृष्ण जन्म का वर्णन किया, जन्म समय बधाईयाँ गायी गई, “नन्द घर आनन्द भयो जय कन्हैया लाल कि”, भक्त भाव विभोर हो नाचने लगे |कथा मे जैसे ही श्रीकृष्ण जन्म प्रसंग आया पूरा पंडाल हाथी घोडा पालकी जय कन्हैयालाल के जयकारों से गूंज उठा।