गेवरा कोयला खदान विस्तार परियोजना में भू-विस्थापितों पर अत्याचार, लोकतंत्र पर कलंक — जयसिंह अग्रवाल
नमस्ते कोरबा : साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (एस.ई.सी.एल.) के अधीन संचालित गेवरा कोयला खदान विस्तार परियोजना से प्रभावित भू-विस्थापित परिवारों पर बीते दिनों हुआ लाठीचार्ज, उत्पीड़न और निजी गुंडों द्वारा दी जा रही धमकियाँ एक गंभीर और निंदनीय घटना है, जो लोकतांत्रिक मूल्यों और मानवाधिकारों की खुली अवहेलना का प्रतीक है।
कोरबा जिला पुलिस अधीक्षक को लिखे पत्र में कड़ी आपत्ति जताते हुए उक्त बातें पूर्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने कही,भू-विस्थापित ग्रामीण वर्षों से अपनी जमीन, आजीविका, और पुनर्वास अधिकारों के लिए शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे हैं। इनकी माँगें उचित मुआवजा, रोजगार में पारदर्शिता, पुनर्वास स्थल की व्यवस्था, तथा विस्थापन से जुड़ी सामाजिक सुरक्षा — न केवल जायज़ हैं बल्कि संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों के अंतर्गत आती हैं।
पूर्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने आगे कहा है की यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इन शांतिपूर्ण प्रदर्शनों के जवाब में खदान प्रबंधन ने संवाद के बजाय दमन का रास्ता चुना। सी.आई.एस.एफ. जवानों द्वारा लाठीचार्ज करवाना न केवल अमानवीय है बल्कि यह भी दर्शाता है कि प्रशासनिक मशीनरी अब आम नागरिकों के बजाय औद्योगिक हितों की सुरक्षा में लगी हुई है।और भी चिंताजनक बात यह है कि खदान ठेका कंपनियों द्वारा निजी गुंडों और बाउंसर्स को ग्रामीणों को डराने-धमकाने के लिए प्रयोग किया जा रहा है। यह कार्रवाई सीधे-सीधे कानून-व्यवस्था की धज्जियाँ उड़ाती है और यह प्रश्न उठाती है कि आखिर प्रशासन इन घटनाओं पर मौन क्यों है?
उन्होंनें आगे कहा की यह घटना केवल कुछ ग्रामीणों की समस्या नहीं है, बल्कि यह लोकतंत्र, कानून और नागरिक अधिकारों के लिए खतरे की घंटी है। जिन भूमि-पुत्रों की जमीन पर कोयले की खुदाई कर सरकार और कंपनियाँ अरबों का राजस्व अर्जित कर रही हैं, उन्हीं लोगों को आज उनके ही घरों से उजाड़ा जा रहा है यह विडंबना नहीं, बल्कि शासन की संवेदनहीनता का प्रमाण है।
हम माँग करते हैं कि
1. भू-विस्थापितों पर हुए लाठीचार्ज और बल प्रयोग की उच्चस्तरीय एवं निष्पक्ष जाँच कराई जाए।
2. ठेका कंपनियों द्वारा नियोजित गुंडों व बाउंसर्स की पहचान कर तत्काल कानूनी कार्रवाई की जाए।
3. एस.ई.सी.एल. प्रबंधन को निर्देशित किया जाए कि किसी भी परिस्थिति में निजी सुरक्षा बल या बाहरी व्यक्तियों से ग्रामीणों को डराने या हिंसा करने जैसी गतिविधियाँ न कराई जाएँ।
4. प्रशासन, खदान प्रबंधन और भू-विस्थापित प्रतिनिधियों के बीच तत्काल त्रिपक्षीय बैठक आयोजित कर वास्तविक समस्याओं का स्थायी समाधान निकाला जाए।
5. भविष्य में इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने हेतु पुलिस बल को संयमित व्यवहार के स्पष्ट निर्देश दिए जाएँ।
यदि इस मामले में शीघ्र कार्रवाई नहीं की गई, तो जन-आक्रोश और व्यापक रूप ले सकता है, जिसकी सम्पूर्ण जिम्मेदारी जिला प्रशासन और पुलिस तंत्र की होगी।
यह संघर्ष केवल जमीन या मुआवजे का नहीं बल्कि सम्मान अस्तित्व और न्याय की लड़ाई है और यह तब तक जारी रहेगा जब तक भू-विस्थापितों को उनका हक नहीं मिल जाता।
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