शहर का प्रवेश द्वार उसकी पहचान होता है,लेकिन नगर निगम के वादों में दफ़न गौ माता चौक की सुंदरता
नमस्ते कोरबा :- कहा जाता है कि शहर का प्रवेश द्वार उसकी पहचान होता है। पहली झलक में ही तय हो जाता है कि शहर कितना सजीव, कितना सलीकेदार है। लेकिन कोरबा का गौ माता चौक देख लीजिए,यहाँ स्वागत नहीं,उपेक्षा और अव्यवस्था की जोरदार झलक मिलती है।
जिला मुख्यालय में प्रवेश करने वाले लोगों का “स्वागत” सबसे पहले सड़क के गड्ढे करते हैं। उनके साथ उड़ती धूल और राख मिलकर माहौल को और खास बना देते हैं। ऊपर से सड़क के दोनों ओर खड़ी भारी-भरकम गाड़ियाँ यातायात को ठप कर देती हैं।
चौक के पास बना गार्डन भी अब सिर्फ़ नाम का रह गया है न हरियाली, न साज-संवार। पूछिए किसी आगंतुक से तो वह यही कहेगा, “अगर स्वागत द्वार ऐसा है तो भीतर का शहर कैसा होगा?”
नगर निगम हर बार यही राग अलापता है,“प्रयास जारी हैं।” लेकिन सवाल यह है कि ये प्रयास आखिर दिखाई क्यों नहीं देते? जनता के पैसे से योजनाएँ बनती हैं, घोषणाएँ होती हैं, फोटो खिंचते हैं लेकिन हालत वही ढाक के तीन पात। क्या निगम का काम सिर्फ बोर्ड लगाने और वादे करने तक ही सीमित है?
गौ माता चौक जिसे कोरबा की शान होना चाहिए था, आज निगम की नाकामी का जीवित स्मारक बन चुका है। यह सिर्फ एक चौक नहीं, बल्कि प्रशासन की सुस्ती और शहर की दुर्दशा का प्रतीक है।
स्थानीय निवासियों ने कह कि अब और बहाने नहीं चलेंगे। ज़रूरत है अवैध पार्किंग पर लोहे की छड़ी चलाने की। गार्डन को बदहाली से बाहर निकालने की गड्ढों और धूल से निजात दिलाने की। स्वागत द्वार को ऐसा बनाने की कि बाहर से आने वाला कहे, “वाह, यही है कोरबा!”
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