Wednesday, October 16, 2024

राष्ट्रपति के दत्तक पुत्रों के लिए बसाया गया आदर्श गांव,लेकिन मूलभूत सुविधाएं गांव वालों की पहुंच से दूर

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राष्ट्रपति के दत्तक पुत्रों के लिए बसाया गया आदर्श गांव,लेकिन मूलभूत सुविधाएं गांव वालों की पहुंच से दूर

नमस्ते कोरबा : कोरबा जिला मुख्यालय से लगभग 26 किलोमीटर दूर सतरेंगा,अजगरबहार मुख्य सड़क से 6 किलोमीटर दूर राष्ट्रपति के दत्तक पुत्रों पहाड़ी कोरवाओ का एक गांव है छाता सराय, जिसे आदर्श गांव के रूप में कोरबा के तत्कालीन कलेक्टर ने बसाया था.

मुख्य मार्ग से 6 किलोमीटर की कच्ची सड़क से सफर करने के बाद आपको एक स्वागत द्वार दिखेगा इसके भीतर जाने के बाद ही कोरबा के आदर्श गांव और यह निवासरत पहाड़ी कोरवाओं के स्थिति का अंदाजा हो जाएगा.

आपको बता दे की 2016 में गांव में चौपाल लगाया गया था, उसे समय के जनजाति कार्य मंत्रालय के सचिव विनोद कुमार तिवारी के साथ गांव में तत्कालीन कलेक्टर मोहम्मद कैसर हक ने दौरा किया था और उनके द्वारा लगभग 25 परिवारों के इन पहाड़ी कोरवाओं को मुख्य धारा से जोड़ने के लिए इस गांव का कायाकल्प किया गया था, गांव में प्रवेश द्वार, प्रधानमंत्री आवास,बच्चों के लिए स्कूल, आंगनबाड़ी परिसर,पानी की टंकी, और बिजली के लिए सौर ऊर्जा के उपाय करवाए गए थे तथा गांव के भीतर चकर टाईल्स भी लगाया गया, गांव के लोगों ने पक्की सड़क की मांग की थी जो आज तक अधूरी है.

वर्तमान में यहां की स्थिति ऐसी है कि गांव में पानी की टंकी तो लगी है लेकिन उसमें पानी नहीं आता और यहां निवासरत ग्रामीण गांव के समीप रहने वाले एक नाले के पानी से अपना जीवन यापन कर रहे हैं, सौर ऊर्जा बिजली घर बनाए गए हैं परंतु गांव के लोग अंधेरे में रहने को मजबूर हैं, प्रधानमंत्री आवास और आंगनबाड़ी केंद्र की हालत अत्यंत जर्जर हो चुकी है किसी में दरवाजे तो किसी में खिड़कियां गायब है.

गांव की हालत का अंदाजा देखकर ऐसा लगता है मानो सालों से कोई सरकारी सुविधा या फिर कोई सरकारी अधिकारी यहां निवासरत लोगों तक नहीं पहुंच सके हैं. यहां के लोग पूरी तरह तृषकृत जीवन जी रहे हैं, गांव वालों ने बताया कि चुनाव के समय में नेता या उनके कार्यकर्ता जरूर गांव में पहुंचते हैं बाकी समय उनको उनकी हाल पर छोड़ दिया जाता है.

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स्थिति ऐसी है अगर कोई बीमार पड़ जाए तो गांव में अस्पताल का नामोनिशान नहीं है. दवा मिल जाए इसकी कोई उम्मीद ही नहीं.राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र का दर्जा देकर उनके साथ ऐसा व्यवहार किया जा रहा है तो ऐसी व्यवस्था का क्या फायदा.

सवाल उठता है कि अगर इस तरह की स्थिति है तो क्या वाकई में उनको भारत के राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र बताने का कोई अर्थ भी है?यह गंभीरता से विचारणीय है कि जब हम राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र का तमगा देते हैं, तो क्या हमारी जिम्मेदारियां सिर्फ उपाधियों तक सीमित रह जाती हैं? यह समय है कि सरकारी तंत्र इन वास्तविक समस्याओं का समाधान निकाले और वादे नहीं, बल्कि वास्तविक परिवर्तन की ओर अग्रसर हो।

विशेष : इस खबर से संबंधित फोटो और वीडियो हमें बालको के अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता अब्दुल नफीस खान ने उपलब्ध कराए हैं उनका हृदय से आभार

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