Thursday, August 7, 2025

“मुझसे नफरत करने वाले भी कमाल का हुनर रखते हैं…मुझे देखना भी नहीं चाहते मगर,नजर मुझ पर ही रखते हैं..!

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सन्दर्भ: कोरबा लोकसभा का चुनाव

“मुझसे नफरत करने वाले भी कमाल का हुनर रखते हैं…मुझे देखना भी नहीं चाहते मगर,नजर मुझ पर ही रखते हैं..!

कुछ ऐसा हाल इस बार के लोकसभा चुनाव में देखने को मिल रहा है।खासकर कोरबा लोकसभा में यह पंक्तियां साकार होती दिखती हैं जब कांग्रेस को नफरत भरी निगाहों से देखने वाली भाजपा इन दिनों कांग्रेसियों के ही अपने खेमे में शामिल होने से भारी खुश नजर आ रही है। कांग्रेस और कार्यकर्ताओं के हर गतिविधियों पर नजर भी रखी जा रही है।

कहा गया है कि इश्क और जंग में सब जायज है….। कुछ इसी तर्ज पर राजनीतिक पार्टियां चल पड़ी हैं। कुर्सी के इश्क में प्रतिस्पर्धी से जंग के लिए उसके लोगों को तोड़कर चुनावी फौज में अपनी ताकत बढ़ाने का काम कर रहे हैं।

इस चक्कर में यह भूल जाते हैं कि जिसे नेस्तनाबूद कर देने, डायनासोर की तरह विलुप्त कर देने का शोर मचाया जा रहा है, जिसे शिद्दत से नफरत करते हैं, कहीं न कहीं उसी पार्टी के लोगों से अपना कुनबा बढ़ा रहे हैं। देश और प्रदेश को कांग्रेस मुक्त करने की बात करने वाली भारतीय जनता पार्टी इन दिनों मुक्त तो दूर की बात,कांग्रेसयुक्त भाजपा हो चली है।

कुनबा बढ़ाने की खुशी,पर संभालने का संकट भी

भाजपा अपना कुनबा कांग्रेसियों को साथ लेकर बढ़ने से काफी खुश नजर आ रही है पर उसे यह भी नहीं भूलना चाहिए कि जो लोग हाथ छोड़कर दामन थाम बैठे हैं उनकी समय-समय पर अपनी-अपनी छोटी-बड़ी महत्वाकांक्षाएं भी रही हैं। उनकी पूर्ति एक आका ने नहीं की तो दूसरे आका को पकड़ लिए।

वैसे धुआंधार पार्टी प्रवेश को लेकर एक बात तो जन सामान्य में काफी प्रमुखता से तैर रही है कि हर किसी को सत्ता का संरक्षण चाहिए, इसलिए उसके साथ चल पड़े। किसी ने करोड़ों रुपए का टेंडर लेकर काम किए बगैर रकम को दबा दिया है तो किसी ने सरकार की योजनाओं के प्रथम किस्त की राशि को गबन कर लिया है। कई लोग सिस्टम के सताए हुए हैं।

खा-पीकर हजम कर लेने की प्रवृत्ति कई ठेकेदारनुमा लोगों पर अब भारी पड़ रही है। अनेक लोगों की दुकानदारियां बंद होने की कगार पर पहुंचने वाली ही थी कि उन्हें ऑफर मिल गया, मानो संजीवनी बूटी मिल गई। ऐसे कई नहीं बल्कि अधिकांश लोग हैं जो कहीं ना कहीं अप्रत्यक्ष तौर पर अपना कारोबार देखते हुए भाजपा का दामन थाम बैठे हैं।

“भय बिन प्रीत न होय गोसाईं”…..

एक जाने-अनजाने भय ने भी यह पार्टी प्रेम बढ़ाया है। अब इनकी निष्ठा कितनी बरकरार रहेगी, यह तो वे खुद भी नहीं बता सकते। वैसे कुनबा रफ्तार-दर-रफ्तार बढ़ने से फीलगुड पर चल रही भाजपा के साथ इन सबको आगे संभालने का भी संकट हो सकता है। आखिर सबको संतुष्ट करना किसी चुनौती से कम नहीं।

 जोगी कांग्रेस भी तो आखिर कांग्रेसी…

भाजपाई उत्साहित हैं कि उन्होंने पूरा का पूरा जोगी कांग्रेस अपने आपमें समाहित कर लिया है जो कि मूलतः कांग्रेस ही है। राजनीतिक महत्वकांक्षा और पृथक दल गठन के कारण यह अस्तित्व में आई थी। हालिया विधानसभा चुनाव में अप्रत्यक्ष तौर पर बीजेपी को जोगी कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी उतारने के बाद भी बैक समर्थन दिया जिसे लोग एकाएक समझ नहीं पाए थे लेकिन अभी पूर्णतः भाजपा में विलय ने तस्वीर साफ कर दिया। कांग्रेसी विचारधारा के सभी जोगी कांग्रेस के लोग बीजेपी के हो गए हैं तो कई साथ होने की कगार पर हैं।

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