5 सितम्बर कोरबा पुलिस परिवार पर टूटा दुख का पहाड़ तालाब में डूबे तीन मासूम, नेताओं की चुप्पी ने और गहरा किया जख्म
नमस्ते कोरबा : कोरबा का 5 सितम्बर अब हमेशा एक दर्दनाक तारीख के रूप में याद रखा जाएगा। यह दिन पुलिस परिवार के लिए उस घड़ी की तरह है, जब उनके अपने तीन मासूम बच्चे तालाब में नहाने गए और फिर कभी लौटकर नहीं आए। जैसे ही यह खबर फैली, पूरे पुलिस परिवार में मातम पसर गया। रोते-बिलखते परिजनों का हृदयविदारक दृश्य हर किसी की आंखों को नम कर गया।
घटना की सूचना मिलते ही कोरबा एसपी सहित पुलिस विभाग के सभी वरिष्ठ अधिकारी मौके पर पहुंचे। पुलिस परिवार को ढांढस बंधाने का हर संभव प्रयास किया गया। अधिकारियों की मौजूदगी ने शोकाकुल परिवार को यह अहसास दिलाया कि इस अंधेरे समय में वे अकेले नहीं हैं।
लेकिन, इस भीषण त्रासदी के बीच जो सबसे बड़ा सवाल उभर कर सामने आया, वह है जनप्रतिनिधियों की चुप्पी और उदासीनता। इस जिले की राजनीति से जुड़े किसी भी छोटे-बड़े नेता ने इस घटना स्थल तक पहुंचना जरूरी नहीं समझा। यह वही नेता हैं, जो किसी राजनेता या उनके परिजनों के साथ हादसा घटते ही संवेदना प्रकट करने के लिए सबसे पहले कतार में खड़े मिलते हैं। लेकिन पुलिस परिवार की इस अपार पीड़ा में उनकी अनुपस्थिति ने संवेदनशीलता को शर्मसार कर दिया।
क्या इस दर्द को सिर्फ पुलिस परिवार ही महसूस करेगा? क्या मासूम बच्चों की असमय मौत राजनीति के लिए कोई मायने नहीं रखती? इन सवालों ने जिले के जनमानस को झकझोर कर रख दिया है।
आज कोरबा की जनता पुलिस परिवार के साथ खड़ी है। हर कोई यही प्रार्थना कर रहा है कि ईश्वर इस असहनीय दुख को सहने की शक्ति परिजनों को प्रदान करें। लेकिन साथ ही यह प्रश्न भी उठ रहा है कि आखिर हमारे जनप्रतिनिधियों की संवेदनाएं कब जागेंगी,क्या सिर्फ तब जब यह दर्द उनकी चौखट पर दस्तक देगा?







