
राज्य सरकार ने नरवा-गरवा-घुरवा-बाड़ी विकास कार्यक्रम शुरू किया तो कोरबा जिले में इसके क्रियान्वयन की मैदानी स्तर पर जिम्मेदारी महिलाओं के हिस्से आई। गौठान समितियों के माध्यम से गौठानों के संचालन से लेकर गौठानों को आजीविका के बहुआयामी केन्द्र के रूप में विकसित करने में महिलाओं का बड़ा योगदान रहा। कोरबा जिले में संचालित लगभग 250 गौठानों का पूरा प्रबंधन महिलाओं के हाथ में है। इन गौठानों मंे डे-केयर के रूप में पशुओं की देखभाल के साथ-साथ वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन, गोबर खरीदी, गोबर से विभिन्न उत्पादों का निर्माण जैसी सभी गतिविधियां महिला स्व सहायता समूहों की सदस्यो द्वारा संचालित हैं। गौठानों में चारागाह के प्रबंधन से लेकर सब्जी उत्पादन का काम भी महिला समूह ही कर रहे हैं। कोरबा जिले में नौ हजार 906 महिला स्व सहायता समूहों के माध्यम से लगभग एक लाख 15 हजार महिलाओं का एक बड़ा और मजबूत संगठन है। हरे कृष्णा स्व सहायता समूह, धन लक्ष्मी स्व सहायता समूह, पूजा स्व सहायता समूह, सरस्वती स्व सहायता समूह, साईं स्व सहायता समूह, बेबी स्व सहायता समूह, जय संतोषी मां स्व सहायता समूह और ऐसे मातृ शक्ति प्रेरित नामों के कई समूह कोरबा जिले को महिला सशक्तिकरण की दिशा में आगे बढ़ाने में लगे हैं। साढ़े छह हजार से अधिक महिला समूहों की लगभग 25 हजार महिलाएं खेती-किसानी, बागवानी, पशुपालन से जुड़ी रोजगार मूलक गतिविधियों में संलग्न है। 262 महिला समूहों द्वारा जैविक खाद का निर्माण, गोबर के गमले, मूर्तियां और अन्य आकर्षक कलाकृतियां बनाने का काम किया जा रहा है।

छत्तीसगढ़ सरकार की महिला कोष ऋण योजना ने भी महिला समूहों को आत्मनिर्भर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। महिला एवं बाल विकास विभाग की विभिन्न पोषण योजनाओं के लिए 89 समूहों की लगभग 900 महिलाएं रेडी टु इट बनाने का काम कर रहीं हैं। एक हजार 600 से अधिक समूहों की 17 हजार से अधिक महिलाएं गर्म पका भोजन तैयार कर कुपोषित बच्चों और गर्भवती माताओं को रोज खिला रहे हैं। महिलाओं से जुड़े कामों के साथ-साथ पुरूषों के एकाधिकार वाले कई जीविकोपार्जन के काम कोरबा जिले में महिला समूहों द्वारा किए जा रहे हैं। ईंट निर्माण, चांवल व्यवसाय, आंटा चक्की संचालन, कोशा धागाकरण, सिलाई व्यवसाय, किराना-कपड़ा मनिहारी व्यवसाय, मसाला व्यवसाय, पापड़ निर्माण, बांस-शिल्प व्यवसाय से लेकर वनोपज संग्रह, साबुन, रंग, गुलाल निर्माण जैसे कामों में महिला समूहों की सदस्यों ने अपनी क्षमता और कार्य कुशलता का उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है। महिला कोष के माध्यम से जिले के दो हजार 114 समूहों को अभी तक अपना व्यवसाय करने के लिए 25 से 30 हजार रूपए के हिसाब से चार करोड़ 41 लाख रूपए से ज्यादा का ऋण दिया गया है। इसमें खास बात यह है कि ऋण लेने के बाद समूहों ने अपनी कर्मठता और मेहनत से व्यवसाय को आगे बढ़ाया, अच्छी आमदनी प्राप्त की और लगभग 95 प्रतिशत से अधिक समूहों ने ऋण की अदायगी भी कर दी है। ग्रामीण क्षेत्रो में बैंकिंग सुविधाओं के विस्तार के लिए 149 बैंक सखियां भी काम कर रहीं हैं। पेंशन या स्काॅलरशीप का भुगतान हो या मनरेगा की मजूदरी देना हो, बैंक खाते से राशि निकालना हो या बचत के लिए जमा करना हो ऐसे सभी काम लोगों के घर जाकर बैंक सखियों के माध्यम से आसानी से हो रहे हैं।
वैश्विक महामारी कोरोना के काल में भी जिले की महिलाओं ने जनजागरूकता से लेकर कोरोना मरीजों के ईलाज तक की गतिविधियों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया है। महिला डाॅक्टर, स्वास्थ्य कर्मी, प्रशासनिक अधिकारी-कर्मचारी सभी महिलाओं ने कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए अपने अनुभव का अच्छी तरह उपयोग किया। महिला होने के नाते पारिवारिक ही नहीं सामाजिक और प्रशासनिक स्तर पर भी बारिकियांे का ध्यान रख कोरोना संक्रमण से बचाव की रणनीति तैयार की गई। जिले की कलेक्टर श्रीमती किरण कौशल के साथ-साथ अन्य महिला प्रशासनिक अधिकारियों ने भी इसमें अपने अनुभव का समावेश किया। परिवार के बुजुर्गों से लेकर छोटे बच्चों तक को संक्रमण से बचाए रखने के लिए सुबह से शाम तक के क्रियाकलापों का गहन विश्लेषण करते हुए तैयार रणनीति का ही परिणाम था कि जिले का कोरोना बचाव माॅडल दूसरे जिलों और राज्यों के लिए अनुकरणीय हो गया। संक्रमण के प्रारंभिक दौर में महिला समूहों ने मास्क और सेनेटाइजर बनाकर वितरण करके अपनी संवेदनशीलता और सजगता की मिसाल पेश की। मितानिनों, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने स्वास्थ्य कर्मियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कोरोना संक्रमितों की पहचान में अपना बहुमूल्य योगदान दिया, तो जिले की महिला शिक्षकों ने भी मोहल्ला क्लास, पढ़ई तुंहर दुआर, आॅनलाइन क्लास जैसे उपायांे से बच्चों की पढ़ाई जारी रखी।

महिलाआंे के सशक्त योगदान से ही कोरबा प्रदेश के अन्य जिलों के लिए महिलाओं के मामले में प्रेरणा स्रोत बनने की ओर अग्रसर है। महिलाओं की सहनशीलता, संवदेनशीलता और कर्मठता ने ही कोरोना जैसी महामारी से लड़ने का हौसला दिया है और छोटे-छोटे अवसरों को आजीविका के बड़े साधन के रूप में विकसित होने का मौका भी प्रदान किया है। गोबर खरीदी और गोबर से गमले, आकर्षक मूर्तियांे, कलाकृतियों से लेकर अगरबत्ती और गोबर काष्ठ बनाना इसका जीवंत उदाहरण है। पुरातन काल से मानव सभ्यताओं के विकास में महिलाओं की यह भागीदारी आज भी जारी है और जब तक जीवन है तब तक जीवनदायिनी मातृशक्ति ही इसकी संवाहक बनी रहेगी।