दीपावली पर कोरबा को रोशन करने के लिए मिट्टी के दिए अपनाकर बढ़ाएं कोरबा का मान
नमस्ते कोरबा : दीवाली रोशनी का पर्व है पर असली रोशनी वही है जो अपनेपन से जगमगाए। कोरबा में इस बार फिर मिट्टी के दिए बनाने की परंपरा पूरे जोश में है। शहर के कुम्हार परिवार अपने हाथों से ऐसे दीये गढ़ रहे हैं जो न सिर्फ घरों को बल्कि दिलों को भी रौशन कर रहे हैं।
कोरबा जिले के विभिन्न इलाकों में इन दिनों कुम्हार बस्तियाँ जीवंत हो उठी हैं। महिलाएँ रंगीन दियों को सजाने में व्यस्त हैं, बच्चे मिट्टी गूँथ रहे हैं और बुज़ुर्ग अनुभव से हर दिए को सुंदर आकार दे रहे हैं। ये सिर्फ दीये नहीं बल्कि मेहनत परंपरा और आत्मसम्मान का प्रतीक हैं।
आज जब LED लाइटें और इलेक्ट्रिक झालरें हर कोने को चमका रही हैं तब आइए इस बार कुछ अलग करें।स्थानीय कुम्हारो से मिट्टी का दिया खरीदकर न सिर्फ अपने घर को बल्कि कोरबा की असली पहचान को रोशन करें। क्योंकि यह सिर्फ एक दीप नहीं भावना है परंपरा है और हमारी मिट्टी की खुशबू से जुड़ा गर्व है।
कोरबा के दिया बनाने वाले कलाकार कहते हैं “दीवाली तभी सच्ची होती है जब हाथों से बने मिट्टी के दिए जलाए जाएं।” उनकी बात में सच्चाई भी है और संवेदना भी। जब हम इन दियों को जलाते हैं, तो सिर्फ घर रोशन नहीं होते किसी गरीब परिवार का आँगन भी उजाला पाता है।
इस बार की दिवाली पर आइए कोरबा की इस परंपरा को सलाम करें। एक बार फिर लौट चलें मिट्टी की उस सोंधी महक की ओर जहाँ दीए सिर्फ जलते नहीं जीते हैं। जहाँ रौशनी सिर्फ घरों में नहीं दिलों में उतरती है।
क्योंकि सच्ची दिवाली वही है जो अपनी मिट्टी से अपने लोगों से अपने कोरबा से जुड़ी हो,
Read more :- एन.के.एच. सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल,सेवा, समर्पण और विश्वास के 11 वर्ष पूर्ण, केक काटकर मनाया स्थापना दिवस