Wednesday, March 12, 2025

कोरबा का रहस्यमयी गांव:खतरनाक गुफाओ से मिलने वाला चमगादड़ों का मल बना वरदान,लेकिन गुरुवार को जाना सख्त मना जा सकती है जान….

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कोरबा का रहस्यमयी गांव:खतरनाक गुफाओ से मिलने वाला चमगादड़ों का मल बना वरदान,लेकिन गुरुवार को जाना सख्त मना जा सकती है जान….

नमस्ते कोरबा : जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम गेराव एक ऐसा स्थान है, जहां आदिवासी संस्कृति और परंपराओं का अद्भुत मेल देखने को मिलता है. चारों ओर घने जंगल और दुर्गम पहाड़ों से घिरा यह गांव न सिर्फ अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है, बल्कि यहां की कृषि पद्धति और धार्मिक मान्यताएं इसे विशेष बनाती हैं.इस गांव के किनारे स्थित एक घने जंगल वाले पहाड़ी पर गुफा है जिसे “बिठराही गुफा” के नाम से जाना जाता है, ग्रामीणों के लिए एक देवस्थान भी है.

गुफा तक पहुंचने का सफर आसान नहीं है

गुफा तक पहुंचने का सफर आसान नहीं है,हमने इस अद्भुत परंपरा को नजदीक से देखने के लिए गांव के खेम सिंह राठिया, धन सिंह और फूल सिंह के साथ गुफा तक का सफर तय किया. हाथों में जलती लकड़ी, बड़े-बड़े टॉर्च और धारदार औजार लिए यह ग्रामीण घने जंगल से होकर गुफा तक पहुंचे.रास्ते में जंगली जानवरों से बचाव के लिए ये लोग ऊंची आवाज में चिल्लाते रहे.गुफा तक पहुंचने के बाद ग्रामीण हाथ जोड़कर देवता से प्रार्थना करते हैं और वहां से चमगादड़ों का मल इकट्ठा करते हैं.

इस स्थान की सबसे खास बात है इसमें मौजूद चमगादड़ों का मल

इस स्थान की सबसे खास बात है इसमें मौजूद चमगादड़ों का मल, जिसे ग्रामीण कठिन पहाड़ी चढ़ाई और खतरनाक गुफा में जाकर इकट्ठा करते हैं.ग्रामीण इसे अपनी खेती के लिए सर्वोत्तम जैविक खाद मानते हैं. घंटों की मशक्कत के बाद जब ये लोग गुफा से चमगादड़ों का मल लेकर लौटते हैं, तो उसे सीधे खेतों में डालते हैं. स्थानीय किसान दावा करते हैं कि इस खाद के इस्तेमाल से उनकी जमीन की उर्वरक क्षमता बढ़ती है और फसल अच्छी होती है. गांव के किसान खेम सिंह राठिया बताते हैं, की वें एक एकड़ जमीन में करीब 20 किलो चमगादड़ों का मल डालते हैं. इसके बाद किसी अन्य रासायनिक खाद की जरूरत नहीं पड़ती.हमारी जमीन उपजाऊ बनी रहती है.

गुरुवार को इस गुफा तक आना सख्त मना है

हालांकि इस गुफा को लेकर ग्रामीणों की एक खास मान्यता भी जुड़ी हुई है. धन सिंह बताते हैं, “गुरुवार को इस गुफा तक आना सख्त मना है. हमारी मान्यता है कि उस दिन देवता साक्षात रूप से यहां विराजमान रहते हैं. उस दिन यहां आने से जान पर खतरा हो सकता है।” इसीलिए गुरुवार को कोई भी ग्रामीण गुफा के आसपास जाने की हिम्मत नहीं करता

ग्राम गेराव की इस अनोखी परंपरा ने न केवल जैविक खेती को बढ़ावा दिया है, बल्कि यह प्राकृतिक साधनों का उपयोग करने का एक उत्कृष्ट उदाहरण भी पेश करती है.

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