बालकों में अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही नगर निगम की,कार्यवाही के लिए बालको प्रबंधन को जिम्मेदार ठहराया महापौर ने
नमस्ते कोरबा :- बालको का परसाभाटा चौक लंबे समय से अतिक्रमण की समस्या से जूझ रहा है। सड़क किनारे पक्के-अस्थायी दुकानों के कारण न केवल यातायात बाधित होता है, बल्कि आए दिन दुर्घटनाओं की आशंका बनी रहती है।
बुधवार को नगर निगम की टीम ने इस अतिक्रमण को हटाने की कार्रवाई शुरू की, लेकिन जैसे ही स्थानीय व्यापारियों ने विरोध जताया स्थिति बिगड़ गई। हंगामे के बीच मौके पर पहुंचीं महापौर संजू देवी राजपूत ने अतिक्रमण दस्ते के अधिकारियों से बात की और निगम की टीम वापस लौट गई।
निगम के विश्वस्त्र सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इस क्षेत्र में लगातार हो रही सड़क दुर्घटनाओं की निराकरण के लिए निगम आयुक्त ने कुछ दिनों पूर्व इस क्षेत्र का दौरा कर वस्तु स्थिति से अवगत हुए थे और उन्होंने चौक की सुंदरता और रोड चौड़ीकरण के लिए निगम के अधिकारियों को निर्देशित किया था, जिस पर निगम के अधिकारियों ने क्षेत्र पर कार्य कर रहे हैं व्यापारियों को स्वेच्छा से कब्जा हटाने के लिए नोटिस जारी किया था,
महापौर का बालको कंपनी पर आरोप
मीडिया से बात करते हुए महापौर ने सीधे तौर पर बालको कंपनी पर मनमानी करने का आरोप लगाया। और व्यापारियों के दुकान हटाने की जिम्मेदारी बालको प्रबंधन पर डाल दी उन्होंने कहा कि छोटे व्यापारियों की वर्षों पुरानी रोजी-रोटी पर हमला बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। सवाल यह है कि यदि कार्रवाई निगम की थी, तो जिम्मेदारी कंपनी पर कैसे डाल दी गई?
निगम और जनप्रतिनिधि आमने-सामने
इस घटना ने साफ कर दिया है कि नगर निगम प्रशासन और चुने हुए जनप्रतिनिधियों के बीच तालमेल की कमी है। अतिक्रमण जैसी ज्वलंत समस्या जो जनता के जीवन और सुरक्षा से जुड़ी है, उस पर भी राजनीति हावी हो रही है। महापौर ने जहां छोटे व्यापारियों के पक्ष में खड़े होकर उन्हें राहत पहुंचाने का काम किया, वही निगम की टीम यह बताने की स्थिति में नहीं रही कि कार्यवाही आखिर किसके निर्देश पर हो रही थी।
इस पूरे घटनाक्रम ने नागरिकों के मन में कई सवाल खड़े कर दिए हैं,यदि अतिक्रमण हटाना आवश्यक था, तो कार्रवाई बीच में क्यों रोकी गई? क्या निगम और महापौर आपसी समन्वय की बजाय आरोप-प्रत्यारोप में उलझे हैं? परसाभाटा चौक की बदहाल स्थिति के लिए आखिर जिम्मेदार कौन है,निगम, महापौर या बालको कंपनी?
नगर प्रशासन की यह भूमिका सवालों के घेरे में है। अतिक्रमण हटाना जनता की सुरक्षा और सुविधा से जुड़ा मसला है, लेकिन जब राजनीतिक दबाव या टकराव के कारण कार्रवाई अधर में लटक जाए, तो इसका सीधा नुकसान आम नागरिक को होता है। महापौर का दायित्व जनता के हितों की रक्षा करना है, वहीं निगम प्रशासन की जिम्मेदारी व्यवस्था को दुरुस्त करना। दोनों के बीच टकराव से न तो अतिक्रमण हट पाएगा और न ही यातायात की समस्या का समाधान हो पाएगा।
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