SIR प्रक्रिया ने वर्षों बाद मिलाया मायका,लेकिन बदल चुकी थी दुनिया
नमस्ते कोरबा : यह किसी फ़िल्म की कहानी नहीं, बल्कि कोरबा के पोड़ी-बाहर क्षेत्र में रहने वाली एक महिला की सच्ची दिल को झकझोर देने वाली दास्तान है,एक ऐसी दास्तान जिसमें कम उम्र की शादी, बिछड़ाव, संघर्ष और वर्षों बाद मायके लौटने पर मिली कड़वी हकीकत समाई हुई है।
महज 16 साल की उम्र में इस महिला की शादी कर दी गई। अपने गांव से ससुराल आकर वह नई जिंदगी में खो गई और धीरे-धीरे मायका, मां-बाप, बहनें सब पीछे छूटते चले गए। नई जिम्मेदारियों और घरेलू परिस्थितियों में उलझकर उसने कभी पीछे मुड़कर देखने की हिम्मत नहीं जुटाई। बचपन का घर परिवार पिता का साया सब मानो किसी धुंधली याद की तरह रह गए।

लेकिन हाल ही में सरकारी SIR प्रक्रिया में उसे अपने माता-पिता की 2003 की पहचान (आईडेंटिटी) की आवश्यकता पड़ी। मजबूरी ने उसे उस मायके की ओर लौटने पर विवश किया जिसे वह लगभग भूल चुकी थी। वह जब वर्षों बाद अपने गांव पहुंची तो वहां उसका इंतज़ार किसी खुशी ने नहीं बल्कि समय ने बदली हुई सच्चाई ने किया।
घर पहुंचते ही उसे पता चला कि उसकी बाकी बहनों की शादी हो चुकी थी, उसके पिता अब इस दुनिया में नहीं रहे, उसकी बूढ़ी मां छोटी बहन के साथ उसके ही ससुराल में रहने को मजबूर थी, और चाचा सहित किसी रिश्तेदार ने कोई सहयोग नहीं किया।
मां से वर्षों बाद हुई मुलाकात एक ऐसा भावुक दृश्य थी जिसे देखने वालों की आंखें नम हो गईं। मां की थकी आंखों में अपनी बेटी की खोई परछाईं को पहचानने की कोशिश थी और बेटी के आंसुओं में इतने वर्षों की दूरी बेबसी और दर्द छलक रहा था। सबसे दुखद बात यह रही कि जिन बहनों के साथ उसने बचपन बांटा था, वही बहनें अब उसके साथ खड़ी नहीं थीं। रिश्तों का ताना-बाना समय और परिस्थितियों ने बदल दिया था।
वर्षों बाद मां-बेटी की मुलाकात भावनाओं से भरी थी। मां ने कांपते हाथों से बेटी को थामा और बेटी की आंखों से वर्षों का दर्द बह निकला। जिस परिवार के साथ उसने बचपन बिताया था वही परिवार अब परिस्थितियों की मार से बिखरा हुआ मिला।
महिला के अनुसार, “मैं छोटी थी… कुछ समझ नहीं था। शादी के बाद ज़िंदगी में ऐसे उलझ गई कि पीछे मुड़कर देखने का समय ही नहीं मिला। आज लौटकर देखा तो मेरा पूरा संसार बदल चुका था।”
SIR प्रक्रिया भले ही आम लोगों के लिए प्रारंभिक चरण में पेचीदा और समय लेने वाली प्रतीत हो रही हो, लेकिन इसकी आवश्यकता और उपयोगिता अब स्पष्ट रूप से सामने आने लगी है। यह प्रक्रिया न केवल अभिलेखों को सुव्यवस्थित कर रही है, बल्कि पुराने पारिवारिक रिकॉर्ड को प्रमाणित करने के माध्यम से लोगों को अपनी मूल पारिवारिक पहचान तक पहुंचने का अवसर भी दे रही है। दस्तावेज़ों की खोज में कई लोग वर्षों बाद अपने बिछड़े रिश्तों तक पहुंच रहे हैं। यह मिलन कई बार भावनात्मक और दर्द से भरा होता है, फिर भी SIR ने सामाजिक पहचान को पुनः प्रमाणिक और विश्वसनीय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
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