Wednesday, November 12, 2025

“प्रकृति का पाठ LIVE: हाथियों के कुनबे ने रुकवाया ट्रैफिक,दिखाया परिवार का असली रूप”

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“प्रकृति का पाठ LIVE: हाथियों के कुनबे ने रुकवाया ट्रैफिक,दिखाया परिवार का असली रूप”

नमस्ते कोरबा :- ये हाथी भी हमसे कुछ कह रहे है, कभी खामोशी से डर दिखाते हैं, तो कभी ममता से दुनिया को चौंकाते हैं,कोरबा-अंबिकापुर नेशनल हाईवे के ग्राम बंजारी के पास जो दृश्य सामने आया,वह सिर्फ एक “सड़क पार करते जानवर” की खबर नहीं,बल्कि एक जीवंत पाठ था, प्रकृति की मूक भाषा में ममता और सह अस्तित्व का सशक्त सन्देश,

ग्राम बंजारी के पास कोरबा-अंबिकापुर नेशनल हाईवे की वो दोपहर बस एक सामान्य दोपहर नहीं थी। वो पल, वो दृश्य. जैसे किसी मूक कविता की अंतिम पंक्ति हो,जिसे पढ़कर पाठक का मन थम जाता है और आंखें अपने आप भीग जाती हैं।

तेज रफ्तार से दौड़ती गाड़ियों की आवाज़ें अचानक धीमी हुईं। हॉर्न थम गए। इंजन शांत हो गए। मानो पूरा हाईवे सांस रोक कर किसी आगामी चमत्कार की प्रतीक्षा कर रहा हो।

और फिर सामने प्रकट हुए कुछ ‘मेहमान’. कोई वीआईपी काफिला नहीं था, कोई सुरक्षा घेरा नहीं, न कोई फ्लैशलाइट… बस एक हाथियों का कुनबा, शांत, सौम्य और अनुशासित।

सबसे आगे नर हाथी विशाल मगर गंभीर मानो एक पिता हो जो अपने पूरे परिवार को इस ‘मनुष्य की दुनिया’ से सुरक्षित पार ले जाने को दृढ़ संकल्पित हो।

उसके पीछे मादा हाथी ममता की मूर्ति जो बार-बार मुड़कर नन्हे शावकों को निहारती, उन्हें हल्के से सूंड से छूती मानो कह रही हो: “आ जाओ… डरो मत… मैं हूं ना…”

शावक डगमगाते पांवों से चल रहे थे। एक पल को सड़क पर आकर रुक गए डर गए शायद। लेकिन फिर जैसे मां की नज़र ने हिम्मत दी,और वो आगे बढ़े।

कोई आहट नहीं कोई घबराहट नहीं। बस एक गहरा संयम, और जिम्मेदारी की मूक अभिव्यक्ति। जो इंसान ये दृश्य देख रहे थे, वो इस क्षण का हिस्सा नहीं बनना चाहते थे, वो तो बस साक्षी थे एक अदृश्य पाठ के।

कुछ मोबाइल निकालकर शूट करने लगे, मगर बहुतों की उंगलियां ठिठक गईं। क्योंकि कैमरा इस भाव को कैद नहीं कर सकता था, जो आंखों में उतर रहा था और हृदय में बसता जा रहा था। उस क्षण कोई बोले भी तो क्या? शब्द तो जैसे कहीं पीछे छूट गए थे।

कोई मां अपने बच्चे को गोद में लेकर यह दृश्य दिखा रही थी, तो कोई पिता अपने बेटे से कह रहा था, “देख बेटा.यही होता है असली परिवार।”

जैसे-जैसे हाथियों का यह परिवार जंगल की ओर बढ़ा, वैसे-वैसे इंसानों की भीड़ में एक अजीब सी खामोशी भर गई। किसी ने कहा नहीं but सबने महसूस किया,यह केवल सड़क पार करना नहीं था यह जीवन के मूल्य पार करवाना था। ममता, सहअस्तित्व, अनुशासन, त्याग इन सब शब्दों को हमने किताबों में पढ़ा है। लेकिन उस दिन बंजारी के पास हाईवे पर हमने उन्हें चलता हुआ जीवंत रूप में देखा।

सवाल ये नहीं है कि हाथियों ने सड़क कैसे पार की सवाल ये है कि क्या हमने उस दृश्य को अपने भीतर उतरने दिया? यदि हां, तो शायद आज हम थोड़ा बेहतर इंसान हो गए।

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