*जयसिंह अग्रवाल ने कुसमुंडा खदान विस्थापितों के साथ हो रहे अन्याय पर SECL प्रबंधन व प्रशासन को दी कड़ी चेतावनी*
नमस्ते कोरबा :- कुसमुंडा खदान विस्तार परियोजना के विस्थापित परिवारों के अधिकारों की अनदेखी, रोजगार और पुनर्वास समझौते की वादाखिलाफी तथा महिलाओं के साथ अपमानजनक व्यवहार को लेकर कोरबा की राजनीति में हलचल तेज हो गई है। पूर्व कैबिनेट मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने ैम्ब्स् प्रबंधन और जिला प्रशासन को कठघरे में खड़ा करते हुए कहा कि यदि हालात नहीं सुधरे तो यह संघर्ष कोरबा से निकलकर राष्ट्रीय स्तर पर पहुँचेगा।
*विस्थापित परिवार रोजगार से वंचित, बाहरी लोगों को प्राथमिकता*
अग्रवाल ने कहा कि खदान विस्तार के लिए हजारों परिवारों ने जमीन और आजीविका त्याग दी थी। इसके बदले रोजगार देने का वादा किया गया, लेकिन आज भी स्थानीय पात्र युवाओं को नौकरी नहीं मिली। “बाहरी लोगों को अनुचित प्राथमिकता दी जा रही है। उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि भर्ती प्रक्रिया पूरी तरह अपारदर्शी है और ठेकेदार मनमानी कर रहे हैं।‘‘
पूर्व मंत्री ने यह भी कहा कि जब विस्थापित महिलाएँ शांतिपूर्वक प्रदर्शन करती हैं, तो कंपनियों के ठेकेदार बाउंसरों का इस्तेमाल कर उन्हें डराने-धमकाने का प्रयास करते हैं। “महिला बाउंसरों ने अपमानजनक व्यवहार किया। यह न केवल सामाजिक मर्यादा का उल्लंघन है, बल्कि मानवाधिकारों का भी हनन है,” अग्रवाल ने कहा। उन्होंने याद दिलाया कि पूर्व में भी महिलाएँ अर्द्धनग्न होकर प्रदर्शन कर चुकी हैं, लेकिन प्रबंधन ने केवल मीटिंग और आश्वासन से बात टाल दी।
*पुनर्वास कॉलोनियों की बदहाल स्थिति*
अग्रवाल ने पुनर्वास कॉलोनियों की दयनीय स्थिति को उजागर करते हुए कहा कि पीने के पानी, स्वास्थ्य सेवाएँ, शिक्षा और सड़क जैसी बुनियादी सुविधाएँ वहाँ उपलब्ध नहीं हैं। कई परिवारों को पूरा मुआवजा भी नहीं मिला। “कागजों में पुनर्वास हो चुका है, लेकिन जमीनी सच्चाई झुग्गीनुमा जीवन है,” उन्होंने कहा।
*प्रशासन पर मिलीभगत का आरोप*
पत्र में प्रशासन और प्रबंधन की मिलीभगत का आरोप लगाते हुए कहा गया है कि बार-बार शिकायतें, धरने और ज्ञापन देने के बावजूद कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। “यह केवल लापरवाही नहीं, बल्कि प्रशासनिक संरक्षण में कंपनियों की मनमानी का खुला प्रमाण है,” अग्रवाल ने कहा।
*संवैधानिक प्रावधानों के उल्लंघन का मामला*
अग्रवाल ने कहा कि कुसमुंडा खदान केवल मुआवजे का मामला नहीं है, बल्कि संविधान के प्रावधानों की सीधी अवहेलना है। अनुसूचित जनजातियों के हितों की रक्षा (अनुच्छेद 46) की अनदेखी की गई है। ग्राम सभा की सहमति और कानूनी प्रक्रियाओं को दरकिनार कर उत्पादन जारी रखना गंभीर अपराध है।
“संविधान खतरे में” राहुल गांधी की चेतावनी का उदाहरण
अग्रवाल ने कहा, “राहुल गांधी बार-बार संविधान पर खतरे की चेतावनी देते हैं। कुसमुंडा इसका जीवंत उदाहरण है। यहाँ भूमि-पुत्रों से जमीन छीनकर उत्पादन तो हो रहा है, पर रोजगार और पुनर्वास केवल आश्वासन में बदल चुके हैं। आवाज उठाने पर उन्हें अपमानित और प्रताड़ित किया जा रहा है। यह लोकतंत्र और संविधान पर सीधा प्रहार है।”
माँगें और अल्टीमेटम
अग्रवाल ने SECL और जिला प्रशासन से तत्काल पाँच कदम उठाने की माँग की हैः-
o सभी पात्र विस्थापित युवाओं को रोजगार और बाहरी भर्ती पर रोक।
o महिला बाउंसरों और संबंधित ठेका कंपनियों पर कार्रवाई।
o पुनर्वास कॉलोनियों में बुनियादी सुविधाओं की तत्काल व्यवस्था।
o लंबित मुआवजों का पारदर्शी वितरण।
o ग्राम सभा की सहमति और सभी कानूनी प्रक्रियाओं की पुनः जाँच।
अंत में अग्रवाल ने चेतावनी दी कि कुसमुंडा खदान विस्थापितों की अस्मिता और संवैधानिक गरिमा का प्रतीक बन चुकी है। यदि प्रबंधन और प्रशासन ने तत्काल सुधारात्मक कदम नहीं उठाए तो संघर्ष तेज होगा और किसी भी अप्रिय घटना की जिम्मेदारी पूरी तरह SECL प्रबंधन और जिला प्रशासन की होगी।