इंसानों की बस्ती में पक्षियों का बसेरा,हर दिन जमती है सैकड़ों कबूतरों की महफिल,कोरबा में एक बर्ड लवर और कबूतरों की दोस्ती की खूब चर्चा
नमस्ते कोरबा : कहते हैं पशु पक्षी इंसानों से काफी डरते हैं। लेकिन यदि उन्हें इंसानों का प्यार मिल जाता है, तो वह इंसानों के वशीभूत हो जाते हैं। कुछ इसी तरह से शहर के निहारिका क्षेत्र के व्यापारी विजय अग्रवाल का दुलार पा कर हर दिन सैकड़ो कबूतरों की महिफल जमती है।
15 साल से ये दोस्ती कायम है
कोरबा में एक बर्ड लवर और कबूतरों की दोस्ती की खूब चर्चा है। 15 साल से ये दोस्ती कायम है। दिन में दो बार कबूतरों का कुनबा युवक से मिलने आता है। उसके हाथो से दाना चुगते है और उड़ जाते हैं। अपने दोस्तो का खयाल रखने के लिए वह युवक साल में डेढ़ से 2 लाख रुपए खर्च करता है।
कबूतरों को अपने हाथो से दाना खिलाते ये युवक विजय अग्रवाल है। निहारिका क्षेत्र में इनका जनरल स्टोर संचालित है। बचपन से ही विजय बर्ड लवर रहे है। दुकान की व्यस्तता के कारण घर में तो बर्ड पालने का वक्त नहीं मिला पर शॉप के पास स सैकड़ो परिंदे इनके दोस्त बन गए। पिछले 15 साल से कबूतरों का कुनबा यहां आता है। विजय को भी इनका इंतजार रहता है। कबूतरों के लिए अलग से गेहूं, ज्वार, बाजरा और चना मंगाकर रखते है। इनके दाना पानी पर विजय हर साल डेढ़ से दो लाख रुपए खर्च करते हैं।
घंटाघर–निहारिका शत में शहर प्रमुख मार्केट है।
वाहनों की आवाजाही और शोर शराबे के बीच करीब 4 से 500 कबूतर यहां आते हैं। यहां के व्यवसाई और राहगीर भी इन्हे नुकसान नहीं पहुंचाते जिसके कारण ये परिंदे बेफिक्री से सड़क किनारे दाना चूगते नजर आते है। शुरुवात में इनकी संख्या कम थी जो लगातार बढ़ती जा रही है। राहगीर भी ये नजारा देखने के लिए रुकते है।
प्रदूषण और रेडिएशन के कारण परिंदों को कई प्रजाति विलुप्ति के कगार पर
प्रदूषण और रेडिएशन के कारण परिंदों को कई प्रजाति विलुप्ति के कगार पर है। शहरी इलाके में परिंदे नजर नहीं आते। मगर विजय अग्रवाल जैसे कई बर्ड लवर है जिन्हे परिंदों की चिंता है। जो भागदौड़ भरी जिंदगी से थोड़ा वक्त निकालकर पक्षियों के संरक्षण में सहभागिता सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहे हैं।
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