लेमरू के मासूमों का भोजन उधारी पर! विभाग की उदासी, प्रधानपाठक बना देवदूत
नमस्ते कोरबा : शिक्षा का मंदिर जहां नन्हें मुन्नों को अक्षर ज्ञान के साथ स्वस्थ भविष्य का सपना दिया जाता है, वहीं कोरबा ब्लॉक के लेमरू गांव का सरकारी प्राथमिक स्कूल आज भूख की मार झेल रहा है। यहां संचालित मध्याह्न भोजन योजना विभागीय लापरवाही की भेंट चढ़ गई है।
स्कूल के प्रधानपाठक चन्द्रलाल शांडिल्य पिछले कई दिनों से बच्चों को भूखा न रहने देने की जद्दोजहद में जुटे हुए हैं। विभाग से खाद्यान्न नहीं मिलने के कारण वे बाजार और गांव से उधार चावल लेकर बच्चों का पेट भर रहे हैं। अब तक वे करीब 50 किलो चावल उधारी में ले चुके हैं।
इस स्कूल में करीब 40 बच्चे पढ़ते हैं, जिनके लिए रोज मध्याह्न भोजन बनता है। बच्चों की भूख और उनकी मासूम आंखों की उम्मीदों को देखते हुए प्रधानपाठक ने हार नहीं मानी। लेकिन सवाल यह है कि जब शासन की सबसे अहम योजनाओं में से एक मध्याह्न भोजन योजना बच्चों के लिए चलाई जा रही है, तो आखिर उसकी आपूर्ति क्यों ठप है?

प्रधानपाठक ने विभाग को बार-बार सूचना देकर हालात से अवगत कराया, लेकिन जिम्मेदार अधिकारी अब तक सुध लेने नहीं पहुंचे। यह न केवल योजना की असफलता है बल्कि मासूम बच्चों के अधिकारों की सीधी अनदेखी भी है। गांव के लोग भी अब इस हालात पर चिंता जता रहे हैं। उनका कहना है कि शिक्षा और पोषण दोनों ही बच्चों का हक हैं, जिन्हें छीनना किसी भी हाल में उचित नहीं।
सरकार और विभाग के अधिकारियों से सीधा सवाल उठता है कि आखिर बच्चों का पेट भरने जैसी संवेदनशील योजना पर इतनी लापरवाही क्यों? अगर प्रधानपाठक शांडिल्य जैसे शिक्षक अपनी जिम्मेदारी से आगे बढ़कर प्रयास न करें, तो शायद मासूम बच्चे आज भूखे पेट ही स्कूल लौटते।







