“भू विस्थापितों द्वारा एसईसीएल प्रबंधन के खिलाफ उग्र प्रदर्शन! पुतला दहन के बाद पुलिस और ग्रामीणों के बीच झड़प”
नमस्ते कोरबा : कुसमुंडा क्षेत्र में एसईसीएल द्वारा अधिग्रहित जमीन को लेकर विवाद लगातार गहराता जा रहा है। पाली, पढ़ानिया और आसपास के गांवों के सैकड़ों ग्रामीण नौकरी और मुआवजे की मांग को लेकर बुधवार को कोरबा के सुभाष चौक पर एकत्र हुए और एसईसीएल प्रबंधन का पुतला दहन किया। इसके बाद प्रदर्शनकारी कलेक्ट्रेट कार्यालय का घेराव करने पहुंचे, जहां पुलिस और ग्रामीणों के बीच झड़प की स्थिति भी बन गई।
ग्रामीणों का आरोप है कि एसईसीएल कुसमुंडा प्रबंधन ने कई वर्षों पूर्व उनकी जमीन अधिग्रहित की थी, लेकिन अब तक उचित मुआवजा और परिवार के किसी सदस्य को नौकरी नहीं दी गई। इससे गांवों में आक्रोश पनप रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि कंपनी ने विकास और पुनर्वास के नाम पर सिर्फ वादे किए, लेकिन जमीनी स्तर पर कोई कार्य नहीं हुआ।
सुबह बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी बैनर, पोस्टर और पुतले के साथ सुभाष चौक पहुंचे। वहां एसईसीएल के खिलाफ नारेबाजी करते हुए प्रबंधन का पुतला दहन किया गया। इसके बाद प्रदर्शनकारी रैली की शक्ल में कलेक्ट्रेट कार्यालय पहुंचे, जहां मुख्य द्वार पर नारेबाजी और हंगामा हुआ।
कलेक्ट्रेट गेट पर काफी देर तक पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच धक्का-मुक्की और तू-तू, मैं-मैं की स्थिति बनी रही। हालांकि पुलिस बल ने स्थिति को संभालते हुए लोगों को शांत किया। मौके पर नगर पुलिस अधीक्षक कोरबा और अन्य अधिकारी पहुंचे और प्रदर्शनकारियों से बातचीत की।
प्रदर्शनकारियों ने कलेक्टर के नाम एक ज्ञापन सौंपा, जिसमें प्रमुख मांगें रखी गईं, जिसमें अधिग्रहित जमीन के बदले नौकरी और मुआवजा तुरंत दिया जाए। पुनर्वास योजना के तहत गांवों को मूलभूत सुविधाएं प्रदान की जाएं। आंदोलनकारियों के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई न की जाए।
नगर पुलिस अधीक्षक कोरबा ने मीडिया को बताया कि, ग्रामीणों ने मुआवजा और नौकरी की मांग को लेकर प्रदर्शन किया। स्थिति को शांतिपूर्ण बनाए रखने के लिए पुलिस बल तैनात किया गया
ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि यदि जल्द ही उनकी मांगें पूरी नहीं की गईं, तो वे एसईसीएल खदानों का घेराव करेंगे और अनिश्चितकालीन धरना शुरू करेंगे। यह मामला न केवल क्षेत्रीय असंतोष का संकेत देता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि अधिग्रहण के बाद पुनर्वास और मुआवजा जैसे विषयों को लेकर कंपनियों और ग्रामीणों के बीच संवाद की कमी किस हद तक विस्फोटक रूप ले सकती है। प्रशासन और एसईसीएल के लिए यह एक गंभीर चेतावनी है कि समय रहते समाधान नहीं निकाला गया, तो हालात और बिगड़ सकते हैं।
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