Thursday, October 16, 2025

दलबदल का कारोबार: राजनीति में ऐन मौके पर दल बदलने का चलन,कोरबा में भी खूब दिख रहा है असर

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दलबदल का कारोबार: राजनीति में ऐन मौके पर दल बदलने का चलन,कोरबा में भी खूब दिख रहा है असर

नमस्ते कोरबा : देश में शायद ही ऐसा कोई राजनीतिक दल होगा,जिसके एक भी नेता ने लोकसभा या विधानसभा चुनाव का टिकट नहीं मिलने से खफा होकर दलबदल न किया हो। चुनाव में जिस दल के जीतने की संभावना अधिक होती है, उसमें टिकटार्थियों की संख्या भी अधिक होती है,लेकिन चुनाव में टिकट तो किसी एक को ही मिलता है? ऐसे में टिकट पाने से वंचित रहे नेता अगर पार्टी के समर्पित कार्यकर्ता हुए तो वे घोषित उम्मीदवार को जिताना अपना कर्तव्य मानते हैं।

पार्टी की रीति- नीति ही उनके लिए सर्वोपरि होती होती है इसलिए टिकट से वंचित रहने के बाद भी वे पार्टी नहीं छोड़ते हैं। इसके विपरीत प्रत्येक पार्टी में ऐसे नेता भी होते हैं जो मानते हैं जनता की सेवा केवल सांसद या विधायक बनकर ही की जा सकती है। ऐसे नेता अपने दल के टिकट से वंचित रहने के बाद दूसरे दल से आश्वासन के बाद उसमे शामिल होने में कोई संकोच नहीं करते हैं। उनके लिए अपनी मूल पार्टी के सिद्धांत एवं नीतियां एक मिनट में ही गौण हो जाते हैं।

‘डूबते जहाज को चूहे पहले छोड़कर भागते हैं, यह कहावत तो आपने सुनी होगी। सियासी दल चुनाव में अपनी हवा बनाने के लिए इस कहावत पर ही अमल करते हैं यानी दल-बदल कराकर वह यह दिखाना चाहते हैं कि उनके विरोधी दल डूबती हुई नैया हैं। लेकिन कई बार यह तकनीक उल्टी भी पड़ जाती है

कोरबा जिले के नेताओं में भी पार्टी बदलने की होड सी मची हुई है, कुछ महीने पूर्व संपन्न हुए विधनसभा चुनाव से नेताओं दल बदलने की प्रक्रिया चालू ह जो वर्तमान में लोकसभा चुनाव में भी जारी है, तथाकथित निष्ठावान कार्यकर्ता एवं पदाधिकारी दूसरी पार्टियों का दामन थाम रहे हैं,

दरअसल, भारतीय लोकतंत्र की यह एक ऐसी खामी है, जिसपर नियंत्रण नहीं पाया जा सका है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि कोई भी राजनीतिक दल इसे रोकने के लिए प्रभावी कानून बनाने में रुचि प्रदर्शित नहीं करता है। देश की राजनीति में ऐसे उदाहरणों की भी कमी नहीं है, जहां किसी दल के नेता ने अधिक बार दलबदल नहीं किया हो। ऐसे नेताओं की संख्या ढेरों है जो अपने इलाके में प्रभावशील होने के चलते जीतने वाले दल में शामिल हो जाते हैं और वहां इनकी ऐसी आवभगत् होती है कि उस पार्टी के समर्पित कार्यकर्ता भी हैरान रह जाता है।

आश्चर्य तो तब होता है जब दलबदल करने वाले नेताओं को नई पार्टी में एकदम क्लीन चिट दे दी जाती है और पार्टी उन्हें एक साफ सुथरी छवि वाले नेता के रूप में फिर जनता के सामने उतार देती है। दलबदल करने वाले नेताओं को अपनी पार्टी में तब ही खामियां नजर आने लगती है ,जब उन्हें टिकट नहीं मिलता है।जीपीएम कॉप ऑफ द मंथ पहल शुरू,साइबर सेल प्रभारी उप निरीक्षक सुरेश ध्रुव बने माह मार्च 2024 हेतु कॉप ऑफ द मंथ..

कई बार अपने दल के हारने की स्थिति में भी नेता दलबदल लेते हैं। दलबदल का कारण सत्ता की बेताबी को भी माना जाता है। वर्तमान में लोकसभा चुनाव प्रारंभ हो चुके हैं, देखना होगा कि जो नेता एक पार्टी से दूसरी पार्टी में जा रहे हैं वह संबंधित लोकसभा प्रत्याशी को जिताने में कितना योगदान दे रहे हैं|

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