शहर में कोचिंग इंस्टिट्यूट के मायाजाल में फसता बचपन,‘स्टेट्स सिंबल’ बना बच्चों को कोचिंग भेजना
नमस्ते कोरबा : एक दौर था जब पढ़ाई में कमजोर छात्रों के लिए ही कोचिंग आवश्यक समझी जाती थी, परंतु इन दिनों कोचिंग एक चलन ही नहीं, ‘स्टेट्स सिंबल’ माना जाने लगा है। आखिर इन स्थितियों का जिम्मेदार कौन है? क्या गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के अभाव में कोचिंग उद्योग पनप रहा है? कहीं ऐसा तो नहीं कि पाठ्यक्रम एवं प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रारूप एवं पद्धति के मध्य व्याप्त दूरी विद्यार्थियों को कोचिंग के लिए विवश करती है? सामान्य प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए भी आज कोचिंग आवश्यक हो गई है। शिक्षा-जगत के नीति-नियंता यदि गहराई से विचार करें तो पाएंगे कि शिक्षा-क्षेत्र में व्याप्त अधिकांश समस्याओं, अनियमितताओं एवं कदाचार की जननी कोचिंग की फलती-फूलती संस्कृति है।
कोचिंग ने सामान्य व्यवसाय से आगे निकलकर संगठित उद्योग का रूप ले लिया
कोचिंग ने सामान्य व्यवसाय से आगे निकलकर संगठित उद्योग का रूप ले लिया है। आनलाइन कोचिंग की पैठ तो अब घर के भीतर तक हो गई है।नि:संदेह सफलता का सब्जबाग दिखाते और सपने बेचते कोचिंग संस्थानों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है। लगभग सभी छोटे-बड़े शहरों में कोचिंग संस्थान कुकुरमुत्ते की तरह उग आए हैं। कोरबा में भी आपको हर क्षेत्र में चाहे वह मुख्य मार्केट हो या कॉलोनी की गलियां कोचिंग संस्थाएं एवं ट्यूशन सेंटर नजर आ जाएंगे,
अधिकांश अभिभावक भी बच्चों पर अपने सपनों का भार थोपने की भूल कर बैठते हैं
अधिकांश अभिभावक भी बच्चों की रुचि, क्षमता, प्रवृत्ति आदि पर विचार किए बिना उन पर अपने सपनों का भार थोपने की भूल कर बैठते हैं, जिसका परिणाम प्रायः त्रासद ही होता है। कोचिंग संस्थाओं के अतिरेकपूर्ण दावों और सफल अभ्यर्थियों के चमकते-दमकते चंद सितारा चेहरों के पीछे लाखों विफल विद्यार्थियों के दर्द, आंसू और स्याह सच सामने नहीं आते।
भेड़चाल के कारण छोटी आयु में बच्चों का बचपन छिन जाता है
केवल भेड़चाल के कारण बहुत छोटी आयु में बच्चों को कोचिंग की भट्ठी में झोंकने से उनका बचपन छिन जाता है। अपने सहपाठियों से प्रतिस्पर्द्धा करते-करते और कोचिंग की यांत्रिक दिनचर्या का भार ढोते-ढोते उनके जीवन से बालसुलभ सहज आनंद और उल्लास लगभग लुप्त हो जाता है। अच्छा होगा कि नीति-नियंता इस पर विचार करें कि छात्रों को किन कारणों से कोचिंग का सहारा लेना पड़ता है?
इन कारणों की पहचान करके उनका निवारण करके ही बेलगाम कोचिंग उद्योग को नियंत्रित किया जा सकता है। कोचिंग उद्योग ट्यूशन की संस्कृति का विस्तार है और यह किसी से छिपा नहीं कि आज प्राइमरी स्कूलों के छात्रों को भी ट्यूशन लेना पड़ता है। यह स्थिति हमारी शिक्षा व्यवस्था का उपहास ही है।
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