कोरबा में कोयला खदानों के विस्तार से बढ़ा विस्थापन संकट,छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन ने उठाई ग्राम सभा के अधिकार और पारदर्शी मुआवजा की मांग
नमस्ते कोरबा। जिले में कोयला खदानों के लगातार विस्तार, हसदेव अरण्य जंगल की कटाई और बांगो बांध विस्थापितों की पीड़ा अब गंभीर रूप ले चुकी है। प्रेस वार्ता में छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला, शालिनी गेरा, लखन सुबोध, रमाकांत बंजारे, प्रशांत झा, दीपक साहू और रेशम यादव ने कहा कि यह लड़ाई अब केवल मुआवजे की नहीं, बल्कि कोरबा के अस्तित्व की बन चुकी है।
नेताओं ने कहा कि 1960 के दशक से अब तक खदानों के विस्तार से हजारों परिवार विस्थापित हुए हैं। खेती योग्य भूमि उजड़ गई है, जल-जंगल-ज़मीन का संतुलन बिगड़ गया है और आज भी कई गांवों का पुनर्वास अधूरा है। उन्होंने आरोप लगाया कि एसईसीएल (SECL) द्वारा जबरन जमीन अधिग्रहण और रोजगार से वंचित करने की घटनाएं बढ़ी हैं।
वक्ताओं ने बताया कि भूमि अधिग्रहण और पुनर्वास अधिनियम 2013 के तहत पांच वर्षों तक अनुपयोगी भूमि किसानों को लौटाई जानी चाहिए, लेकिन उद्योगों को लाभ पहुंचाने के लिए इस प्रावधान की अनदेखी की जा रही है। पहले प्रत्येक खातेदार को रोजगार देने का नियम था, जिसे बदलकर अब “दो एकड़” के आधार पर सीमित कर दिया गया है, जिससे छोटे किसानों का हक छिन गया है।
नेताओं ने चेतावनी दी कि आने वाले 20 वर्षों में खदानें बंद होने लगेंगी, तब कोरबा के लोगों की आजीविका पर संकट और गहराएगा। उन्होंने कहा कि एसईसीएल को केवल मुनाफा नहीं, बल्कि जिम्मेदारी भी लेनी होगी।
जल्द ही कोरबा में प्रदेश स्तर का विस्थापित सम्मेलन आयोजित किया जाएगा, जिसमें किसान आंदोलन के नेता और सामाजिक कार्यकर्ता शामिल होकर आगे की रणनीति तय करेंगे।
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