ऊर्जाधानी की बिजली व्यवस्था भगवान भरोसे,शहर के लोग अंधेरे में रहने को मजबूर
नमस्ते कोरबा : वैसे तो कोरबा ऊर्जाधानी के नाम से जाना और पहचाना जाता है, यहां कोयला और पानी की कोई कमी नहीं है जिससे पावर का निर्माण कर अन्य राज्यो को रौशन किया जाता है। इसके बावजूद शहर के लोग अंधेरे में रहने को मजबूर रहते हैं। एक ओर जहां प्रदेश विद्युत उत्पादन क्षमता में देश में नंबर वन में आ गया है और अनेक कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं लेकिन सुचारू और निर्बाध वितरण की हकीकत तो कुछ और ही बयां कर रही है।
जरा सी हवा चली नहीं कि बिजली गुल
कोरबा शहर में जहां बिजली बनाने के संयंत्र स्थापित हैं,बालको, एनटीपीसी, सीएसईबी, लैंको और एसीबी संयंत्र स्थापित हैं, जहाँ बिजली बनती है, यहां की बिजली से अन्य राज्य रौशन होते है, लेकिन कोरबा शहर के लोग अपने ही जिले में सुचारू बिजली आपूर्ति से दूर हैं, कई बार ऐसा प्रतीत होता है। जरा सी हवा चली नहीं कि बिजली गुल हो जाती है।अनेक बार तो हवा भी नहीं चलती लेकिन बिजली गुल रहती है !
कभी बिजली प्लांट से तो कभी कही कुछ रखरखाव के कारण लाइट बंद
उमस में पसीने से तरबतर लोगों को रात में भी घंटो बिजली नहीं मिलती। कभी भी 3 से 4 घण्टे तक रात-रात भर लाइन बंद हो जाती है। कभी बिजली प्लांट से तो कभी कही कुछ रखरखाव के कारण लाइट बंद कर देते है। सब भगवान भरोसे चल रहा है। विद्युत वितरण कंपनी के अधिकारी भी समझ नही पा रहे हैं कि लाइट कहाँ से बंद हो जा रही है।
शहर से लेकर गांव तक की व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो रही है,आए दिन हाईटेंशन तार भी टूट रहे हैं। लोग लो वोल्टेज की समस्या से जूझ रहे हैं। मांग के अनुरूप आपूर्ति की व्यवस्था को सुनिश्चित नहीं कर पा रहे हैं और विद्युत विभाग के मैदानी कर्मचारियों की लापरवाही के कारण व अधिकारियों की उदासीनता के कारण सही कार्य नहीं हो पा रहे हैं। इसमें यह कहना गलत नहीं होगा कि संधारण के कार्यों में मनमानी भी विद्युत अव्यवस्था के लिए जिम्मेदार है। रात में तो अधिकारी फोन ही नहीं उठाते और कंट्रोल रूम कवरेज से बाहर मिलता है।
जनप्रतिनिधि भी हैं उदासीन
जनता को जनप्रतिनिधियों के द्वारा उसके हाल पर छोड़ दिया गया है। चुनाव नजदीक आते ही ये सक्रियता दिखाने लगते हैं लेकिन वह भी ऐसे मामलों में ज्यादा रूचि लेते हैं जहां उनका राजनीतिक लाभ हो। बिजली के मामले में जनप्रतिनिधियों की उदासीनता से हर कोई वाकिफ है, वरना ऐसे कौन से कारण हैं कि इतनी समस्या के बाद भी बिजली के दफ्तरों में ना तो पहुंच रहे हैं और ना ही अधिकारियों से जवाब तलब कर रहे हैं।
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