
नमस्ते कोरबा :- सूरज की पहली किरण खिलते ही तिरंगा लहराकर प्रतिदिन स्वतंत्रता का सुप्रभात करते हैं संत-रामेश्वर और हरीश कोरबा जिला गठन से अब तक कलेक्टोरेट में 24 साल से ध्वज फहराने व उतारने का कर्तव्य निभा रहे संतराम, बीते कुछ वर्षों से हरीश व रामेश्वर अनिवार्य जिम्मेदारी से जुड़े
जिले का प्रधान कार्यालय ही वहां के नागरिकों के लिए गौरव का सबसे बड़ा केंद्र होता है। इसलिए उस भवन की प्राचीर पर हमें सदैव राष्ट्रीयध्वज लहराता दिखाई देता है।
कोरबा के कलेक्टोरेट कार्यालय में भी उसी परंपरा का निर्वहन किया जाता है और प्रतिदिन की यह जिम्मेदारी यहां संतराम, हरीश और रामेश्वर निभाते हैं। संतराम इनमें सबसे वरिष्ठ हैं, जो कोरबा जिला गठन के बाद से लेकर अब तक, यानि पिछले 24 वर्षों से अपना यह अनिवार्य कर्तव्य निभाते आ रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों से हरीश व रामेश्वर ध्वज चढ़ाते हैं और उतारने का काम संतराम पूरा करते हैं। पर उनके पहले संतराम पर ही दोनों वक्त की जिम्मेदारी थी। तब से वे भोर की पहली किरण (प्रभा) फूटते ही तिरंगा फहराकर स्वतंत्रता का सुप्रभात करते आ रहे हैं।कलेक्टोरेट कार्यालय में नियुक्त 57 वर्षीय संतराम वर्ष 1998 में आईटीआई में पदस्थ हुए।
उसी साल कोरबा जिले का उदय हुआ और उन्हें ही प्रशिक्षित कर जिला मुख्यालय के भवन में प्रतिदिन राष्ट्रीय ध्वज चढ़ाने और उतारने की बागडोर सौंप दी गई। इसके बाद से वे प्रतिदिन सुबह पौ फटते ही तिरंगा लेकर कलेक्टोरेट कार्यालय के भवन में तिरंगा फहराने और शाम को तय वक्त पर उतारने का कार्य बड़ी कुशलता व जिम्मेदारी के साथ निभाते आ रहे हैं। कुछ साल पहले नवीन पदस्थापना पर नियुक्त हुए हरीश जायसवाल और रामेश्वर कश्यप को भी उन्होंने ही तिरंगा चढ़ाने और उतारने की विधि सिखाई। वर्तमान में सुबह ध्वज चढ़ाने का दायित्व हरीश व रामेश्वर ही निभा रहे और शाम को ध्वज उतारने की जिम्मेदारी का निर्वहन संतराम पूरा करते हैं।
सीने में सबसे पहले भरते है आजादी की अनमोल सांसेंसंतराम कहते हैं कि वैसे तो यह काम काफी आसान लगता है पर इस दायित्व में तिरंगे के मान के साथ देश की आन व प्रत्येक देशवासी का गौरव भी निहित है। कर्तव्य की इस अनमोल अनुभूति को शब्दों में बयान करना मुश्किल है। इसे केवल महसूस किया जा सकता है, जो प्रतिदिन सुबह कोरबा में सबसे पहले वे महसूस करते हैं। सूरज की पहली किरण के साथ तिरंगा चढ़ाना और जिले की आजाद फिजा में सबसे पहले आजादी सांस अपने सीने में भरने की अनमोल अनुभूति अतुल्य और अद्वितीय है।रविवार हो या सरकारी छुट्टी, नहीं टूटी कर्तव्य की डोर हरीश और रामेश्वर कहते हैं कि भोर में राष्ट्रीय ध्वज को चढ़ाना हो या शाम को उतारने का कार्य, यह क्रम कभी नहीं टूटता।
रविवार की छुट्टी हो, कोई शासकीय अवकाश या दीपावली-होली ही क्यों न हो, कलेक्टोरेट जाकर राष्ट्रीय ध्वज चढ़ाने का कर्तव्य उन्हें हर हाल में निभाना है और यह जिम्मेदारी उन्हें बड़ा सुकून देती है। हृदय को गौरवांन्वित होने का यह अवसर संतराम 24 साल से तो हरीश व रामेश्वर दो-तीन साल से प्राप्त कर रहे हैं।
