दो शिक्षिकाओं के भरोसे 90 बच्चे, कैसे सुधरेगी शिक्षा व्यवस्था?
नमस्ते कोरबा। शिक्षा के मंदिर में आज हालात कुछ ऐसे हैं कि यहां भगवान तो हैं, लेकिन “पुजारी” गिने-चुने। एनटीपीसी CSR के सहयोग से संचालित चारपारा कोहड़िया प्राथमिक विद्यालय इसका जीता-जागता उदाहरण है। इस स्कूल में कक्षा पहली से पाँचवीं तक 90 से ज्यादा बच्चों की शिक्षा का भार केवल दो शिक्षिकाओं के कंधों पर टिका हुआ है।
अब आप सोचिए, जब 90 बच्चे और महज 2 शिक्षक तो पढ़ाई होगी या जुगाड़? यहां पढ़ाई का समीकरण ऐसा है कि एक क्लास को “होमवर्क” पकड़ा दो और दूसरी क्लास में जाकर उपस्थिति दर्ज करा दो। बच्चे “शिक्षा” से ज्यादा “इंतजार” करना सीख रहे हैं।
कक्षा पाँचवीं के छात्र को हिंदी पढ़ने कहा गया लेकिन उसका उच्चारण इतना टूटा-फूटा था कि जैसे शब्द नहीं, बल्कि पत्थर ठोके जा रहे हों। सवाल उठता है कि अगर पाँचवीं तक पहुँचते-पहुँचते बच्चे हिंदी के अक्षरों से ही जूझ रहे हैं, तो यह शिक्षा व्यवस्था आखिर उन्हें किस भविष्य की ओर धकेल रही है?
सबसे मजेदार बात यह है कि यह स्कूल ऐसे क्षेत्र में है, जहां के जनप्रतिनिधि न केवल विधायक हैं बल्कि कैबिनेट मंत्री भी। और मंत्री जी के भाई खुद इस इलाके के पार्षद हैं। यानी यह स्कूल “वीआईपी वार्ड” की शोभा बढ़ा रहा है। अगर वीआईपी वार्ड की यह स्थिति है तो बाकी सरकारी स्कूलों के हालात का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं बल्कि डरावना है।
आजादी के 77 साल बाद भी अगर हमारे बच्चे “क” और “ख” में उलझे हुए हैं, तो दोष बच्चों का नहीं बल्कि उस व्यवस्था का है जो शिक्षा को “प्राथमिकता” नहीं बल्कि “प्रयोगशाला” मानकर छोड़ देती है। CSR की चमक-दमक और नेताओं के भाषण बच्चों की किताबों में नहीं उतरते न ही उनके भविष्य को संवारते।
अब सवाल यही है दो शिक्षिकाओं के भरोसे 90 बच्चों का भविष्य लिखने वाली यह शिक्षा व्यवस्था कब सुधरेगी? या फिर यही हाल रहा तो शायद अगली बार ये बच्चे भी नेताओं की तरह “भाषण” तो दे लेंगे, मगर “हिंदी” कभी पढ़ नहीं पाएंगे।