पंडित रविशंकर शुक्ला नगर में चल रही भागवत कथा का हुआ समापन,आज हवन और भव्य भंडारे का आयोजन
नमस्ते कोरबा :- सच्चा मित्र वहीं है जो अपने मित्र को निस्वार्थ भाव से प्यार करे और विपत्ति आने पर उसकी सहायता करे। सच्ची दोस्ती में छल और कपट नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से पाप होता है।आचार्य राजू भैया (श्रीधाम वृंदावन वाले) भागवत कथा के अंतिम दिन सुदामा चरित्र का मार्मिक वर्णन किया
कथा पंडाल में मौजूद भक्तजन सुदामा की कथा का वर्णन सुनकर भाव विभोर हो गए और कथा पंडाल में श्री कृष्ण के जयकारे लगने शुरू हो गए। हमें अपने जीवन का प्रत्येक पल ईश्वर भक्ति में व्यतीत करना चाहिए। हमें हर सांस में ईश्वर का नाम लेना चाहिए। एक भी सांस व्यर्थ नहीं जाना चाहिए।
भक्त सुदामा ने श्री कृष्ण के बालपन में अपनी आयु व्यतीत की सौभाग्य से उनके सहपाठी बनें। समय के परिवर्तन में सुदामा ने अपने परिवार को गरीबी में पाला और श्री कृष्ण द्वारकाधीश बने। पत्नी के बार- बार कहने पर अपने मित्र श्री कृष्ण जी को मिलने गये। सुदामा इतने निर्धन थे कि उन्होंने पत्नी द्वारा लोगों से मांग कर लाए गए दो मुट्ठी चावल द्वारकाधीश को भेंट करने के लिए साथ ले चले। सुदामा पूछते हुए राजमहल गए और किसी ने श्री कृष्ण का मित्र होने का विश्वास नहीं किया। एक द्वारपाल ने द्वारकाधीश को सूचित किया। इतना सुनते ही श्री कृष्ण मित्र सुदामा-सुदामा कहते हुए दौड़ पड़े। श्रीकृष्ण अपने रथ पर बिठाकर सुदामा को राज भवन लाए और उनका मान सम्मान किया।
आचार्य श्री ने शुकदेव की विदाई और महाराजा परीक्षित को मोक्ष का प्रसंग सुनाया गया। भक्तों को कथा रसपान कराते हुए कहा कि हमेशा धर्म के मार्ग पर चलना चाहिए, कर्म करो लेकिन, फल की इच्छा मत करो। भगवान हमेशा सच्चे भक्तों में ही वास करते है। सुदामा चरित्र का बखान करते हुए कहा कि संसार में मित्रता भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा की तरह होनी चाहिए। जिनकी कथा में सश्ची मित्रता दर्शाई गई है। आधुनिक युग में स्वार्थ के लिए लोग एक दूसरे के साथ मित्रता करते हैं और काम निकल जाने पर लोग एक दूसरे को भूल जाते हैं।
कथा के अंत में फूलों की होली खेली गई इस दौरान होली उत्सव में भजनों पर नृत्य करते हुए श्रद्धालुओं ने एक दूसरे के साथ फूलों से जमकर होली खेली।